लोकसभा चुनाव का परिणाम भारतीय जनता पार्टी के स्वर्णिम काल की गवाही दे रहा है. पार्टी 2 सीटों से निकलकर दोबारा पूर्ण बहुमत से केंद्र में सरकार बना रही है. जहां वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने अकेले 282 सीट और सहयोगियों के साथ मिलकर 336 सीटों के साथ बहुमत हासिल किया था वहीं इस बार के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने दम पर पहली बार 300 का आंकड़ा पार कर करते हुए 303 सीटों पर विजय हासिल की है. एनडीए ने कुल 350 सीटों पर विजय हासिल करतीकरते हुए एक नया प्रतिमान स्थापित किया है.
यह लोकसभा चुनाव एक नाकाम पक्ष का चुनाव रहा है. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान और चुनाव प्रचार से पहले नरेंद्र मोदी ने ही मुद्दे तय किए और विपक्ष महज उन मुद्दों पर प्रतिक्रिया देता रह गया. अर्थव्यवस्था ढलान पर थी और ग्रामीण परिवेश में निराशा व्याप्त थी. बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर थी परंतु विपक्ष नरेंद्र मोदी के मुद्दों में ही उलझ कर जनता के बीच में महज सत्ता के लिए लड़ रहे प्रतिद्वंदी के रूप में ही दिखता रहा. चुनाव से पहले यह उम्मीद जताई जा रही थी कि किसानों में व्याप्त असंतोष की वजह से लोकसभा की 452 ग्रामीण सीटों पर बीजेपी एक चुनौती देख सकती है परंतु किसान सम्मान निधि जैसी योजना को लाकर मोदी सरकार में इसे भी अपनी एक मजबूत संभावना में बदल दिया.
उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा का महागठबंधन पूरी तरीके से नाकाम रहा और भाजपा ने जातिगत मुद्दों से ऊपर उठकर नए मुद्दों के इर्द-गिर्द विपक्ष को ला एक बड़ी जीत हासिल कर ली. कांग्रेस के लिए यह चुनाव आत्ममंथन का चुनाव है क्योंकि अगर कांग्रेस अभी भी सुधार की तरफ नहीं बढ़ी तो आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी जैसी बड़ी इलेक्शन मशीनरी से लड़ाई में कहीं भी खड़ी दिखाई नहीं देगी. कांग्रेस की सबसे बड़ी दिक्कत वर्तमान समय में राज्य स्तर पर नेतृत्व की कमी का होना ही है. गांधी परिवार के भरोसे पूरे देश में चुनाव जीतने की गलती कांग्रेस दूसरी बार दोहरा चुकी है और एक बड़ी असफलता देख रही है. जम्मू कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक कांग्रेस के पास भाजपा के टक्कर का संगठन नहीं है, इस बात को स्वीकार करते हुए सुधार की गुंजाइश पर कार्य करना होगा. कांग्रेस की सबसे बड़ी दिक्कत उसकी पार्टी में बढ़ रहा परिवारवाद है. मध्यप्रदेश में सिंधिया और कमलनाथ जैसे नेताओं के भरोसे बैठना साथ ही महाराष्ट्र में पूर्व केंद्रीय मंत्री के बेटे मिलिंद को प्रदेश अध्यक्ष बनाना कहीं ना कहीं कांग्रेस के राजनीतिक अपरिपक्वता को भी दर्शाता है. चुनाव जमीन पर लड़े जाते हैं ना कि परिवारों के बीच में और इसलिए कांग्रेस को हर राज्य में जमीनी नेताओं की एक पूरी टीम खड़ी करनी ही होगी. उत्तरप्रदेश में राजबब्बर जैसे अभिनेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर आप चुनाव नहीं जीत सकते हैं. प्रियंका गांधी कोई तुरुप का इक्का नहीं है इस चुनाव में यह भी साबित कर दिया. अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अपनी जमीन बनानी है तो सबसे पहले प्रदेश स्तर पर जमीनी कांग्रेसी नेताओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाना होगा और प्रियंका गांधी को एक लंबा संघर्ष करना पड़ेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, मीडिया और विकास जैसे चार स्तंभों के वो ताकतवर शख्स है जिन्हें हराने के लिए विपक्ष को तरीके से अपनी रणनीति और नीतियों पर विचार करना होगा. इसकी शुरुआत कांग्रेस को भी करनी चाहिए और यह राहुल गांधी के इस्तीफे से ही होनी चाहिए. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बता दिया है कि भाजपा को रोका जा सकता है जब प्रदेश स्तर पर आपके पास एक मजबूत और राष्ट्रवादी नेतृत्व वाला व्यक्ति मौजूद हो.
लेखक- विक्रांत सिंह
संस्थापक एवं अध्यक्ष
फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल
काशी हिंदू विश्वविद्यालय ।