वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने एक फ़रवरी को लोक सभा में वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए देश का ‘बहीखाता’ पेश कर दिया है। अब यह बजट आम चर्चा के लिए सदन के सदस्यों के बीच है।परंपरागत संसदीय कार्य-प्रणाली के अनुसार वित्त मंत्री द्वारा पेश किए गए केंद्रीय बजट पर संसद सदस्य अपनी स्वतंत्र एवं दूरगामी प्रतिक्रिया रखते है। ऐसे में विधायिका के पास यह विशेषाधिकार है कि अगर वह मौजूदा सरकार द्वारा विभिन्न मंत्रालयों को दिए जाने वाले अनुदानों से असंतुष्ट हैं तो वह अपनी असंतुष्टि लोकसभा अध्यक्ष के माध्यम से संसद के सामने रख सकते हैं और यदि अध्यक्ष अनुमति प्रदान करते है तो संसद सदस्य विभिन्न उपलब्ध संवैधानिक प्रावधानो के अनुसार अनुदानों में कटौती का प्रस्ताव संसद में पेश कर सकते है। बजट में प्रमुख कटौती प्रावधान है- नीति कटौती, आर्थिक कटौती और टोकन कटौती।
क) नीति कटौती प्रस्ताव- यदि संसद सदस्य सरकार की ढाँचागत नीतियों से नाख़ुश है और बजट में मंत्रालयो को दिए जा रहे अनुदान से किसी प्रकार से असंतुष्ट है तो वह यह प्रस्ताव सदन में पेश करते है। यह प्रस्ताव विपक्षी पार्टी के सदस्यों द्वारा सदन में रखा जा सकता है और इसके अंतर्गत बजट में मंत्रालय के लिए प्रस्तावित अनुदान को घटाकर एक रुपये करने की माँग की जाती है। विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर यह नीति कटौती प्रस्ताव सदन में पास हो जाता है तो इसे मौजूदा सरकार की घटती लोकप्रियता का सूचक भी माना जाता है और संसद का विश्वास दुबारा पाने के लिए सत्ताधारी पार्टी को सदन में दुबारा बहुमत साबित करना पड़ता है।
ख) आर्थिक कटौती प्रस्ताव- यदि संसद सदस्यों को लगता है कि केंद्रीय बजट में किसी मंत्रालय को दिया जाने वाला प्रस्तावित अनुदान आवश्यकता से अधिक है तो वह प्रस्तावित अनुदान की रक़म को कम करने के लिए सदन में आर्थिक कटौती प्रस्ताव पेश कर सकते हैं। यह प्रस्ताव सदन का कोई भी सदस्य पेश कर सकता है और अगर यह प्रस्ताव सदन में पास हो जाता है तो अनुदान की धनराशि को प्रस्तावित कटौती के अनुरूप कम करना होता है।यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इससे मौजूदा सरकार की सदन में लोकप्रियता (संख्याबल) पर कोई सवाल नहीं उठता है।
ग) टोकन कटौती प्रस्ताव- इस प्रस्ताव के अंतर्गत लोक सभा सदस्य सरकार द्वारा प्रस्तावित केन्द्रीय बजट में किसी ‘अनुदान की माँग’ का विरोध नहीं करते है बल्कि केंद्र सरकार की कार्य शैली पर सांकेतिक असंतोष व्यक्त करते हैं। यदि यह प्रस्ताव लोक सभा में पास हो जाता है तो प्रस्तावित मंत्रालय के अनुदान-माँग में से सौ रुपये की कटौती की अनुमति दे दी जाती।इन बजट कटौती प्रावधानों के माध्यम से विधायिका को कार्यपालिका पर वित्तीय नियंत्रण करने का अधिकार मिलता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इन प्रस्तावों का विशेषाधिकार लोकसभा के सदस्य के पास ही होता है। बजट इसलिये भी महत्ता रखता है क्योंकि इसके माध्यम से मौजूदा सरकार की संसद में लोकप्रियता और देश के प्रति सरकार की दूरगामी आर्थिक- सामाजिक योजनाओं का भी पता लगाया जा सकता है।
(लेखक फाइनेंस एंड इकोनामिक्स थिंक काउंसिल के मुख्य सलाहकार है)