क्या कोविड-19 संकट के बीच चीन होगा अगला वैश्विक नेता?

कोरोना वायरस ने पूरे विश्व की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को प्रभावित किया है। इस तर्क में कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि यह वैश्विक महामारी पूरी दुनिया की दशा और व्यवस्था को बदलने जा रही है। इस पूरी परिस्थिति में चीन की कितनी भी आलोचना कर ली जाए लेकिन यह सत्य है कि वर्तमान समय में चीन दुनिया का नेता बनता जा रहा है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अमेरिका विश्व का नेता केवल हॉलीवुड फिल्मों में ही बनकर रह गया है। इस संकट ने वैज्ञानिक उन्नति का शिखर कहे जाने वाले अमेरिका की सैकड़ों खामियों को विश्व पटल के सामने रखा है। विश्व शक्ति का केंद्र माना जाने वाला अमेरिका आज कोविड-19 के सामने घुटने टेक चुका है। चीन को लेकर कुछ भी स्पष्ट तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन वर्तमान परिदृश्य में देखें तो चीन ने कोविड-19 के वायरस पर एक हद तक नियंत्रण पा लिया है और अपने यहां की व्यवस्था को पुनः चालू कर लिया है। लेकिन अभी भी दुनिया के बहुत से देश और प्रमुख रूप से चुनिंदा बड़ी अर्थ्यवस्थाएं लॉकडाउन में ही जीवन यापन कर रही हैं।

चीन दुनिया का उभरता हुआ वैश्विक नेता है, ऐसा इसलिए क्योंकि चीन मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में पूरी दुनिया का नेतृत्व करता है। कोविड-19 संकट के बीच चीन पूरी दुनिया में अपनी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के बल पर अपनी नई अर्थव्यवस्था को तैयार करने जा रहा है। तमाम आलोचनाओं के बीच भी अमेरिका, भारत और अन्य यूरोपीय देश चीन के ही चिकित्सीय उपकरणों पर निर्भरता दिखा रहे हैं । इस संकट से लड़ने के लिए एक बड़ी मात्रा में टेस्टिंग किट और पीपीई किट की उपलब्धता चीन के जरिए ही अन्य देशों को को उपलब्ध हो पा रही है। यह भी एक तथ्य है कि टेस्टिंग किट का एक बड़ा हिस्सा निर्धारित पैमानों पर सही साबित नहीं हो रहा है।

चीन विभिन्न तरीकों से वैश्विक पटल पर अपना वर्चस्व बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।

1- जिओ-इकनोमिक एवं जियो-पोलिटिकल परिस्थितियों का फायदा लेने की कोशिश।
2 – मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में और बढ़त बनाने की कोशिश।
3 – अन्य देशों के बैंकों और वित्तीय कंपनियों में हिस्सेदारी लेना।
4- दुनिया के विभिन्न देशों को चिकित्सीय सुविधा के साथ-साथ चिकित्सीय उपकरणों की सहायता प्रदान करना।
5- आरसेप (रीजनल कंप्रिहेंसिव इकनोमिक पार्टनरशिप) के जरिए पूर्वी एशियाई देशों में अपनी व्यापारिक दृष्टिकोण को सुनिश्चित करना।
6- वीआरई (वर्चुअल रीजनल इकोनामिक) कनेक्टिविटी विकसित करना।

वर्तमान परिस्थितियां तो चीन के अगले वैश्विक शक्ति के रूप में ही इंगित कर रही हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इन परिस्थितियों में कहां खड़ा होता है। सार्क देशों को एक साथ लाकर भारत ने भी अपनी अंतरराष्ट्रीय नीति का एक नया उदाहरण पेश किया है। भारत के पास सार्क देशों के साथ-साथ बिम्सटेक के रूप में भी एक अच्छा अंतरराष्ट्रीय मंच उपलब्ध जहां वह पूर्वी एशियाई देशों का नेतृत्व कर सकता है। चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच भारत अंतरराष्ट्रीय बड़ी शक्तियों के साथ पुनः एक बार फिर सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए अपना दावा पेश कर सकता है और बाकी अन्य देश इसका समर्थन भी करते दिखेंगे। अमेरिका के लिए संकट के बीच में रूस का रुझान भी महत्वपूर्ण होता जा रहा है। वायरस की उत्पत्ति के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराने के अमेरिका के आरोप पर रूस ने इंकार किया है। यानी कि अगर भविष्य में सुरक्षा परिषद में इस पर चर्चा होती है तो रूस चीन के साथ खड़ा दिखेगा।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बन रहे इन सभी नए समीकरणों के बीच इस बात का ध्यान रखना होगा कि कोविड-19 का संकट पूरी मानव जाति के अस्तित्व के संकट के रूप में खड़ा है। अभी वर्तमान में वैश्विक गुटबाजी को एक तरफ रखते हुए इसके समाधान पर कार्य करना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि यह वक्त एक दूसरे पर दोष लगाने का नहीं बल्कि एक वायरस से लड़ने का है। अच्छा होता कि वैश्विक नेता बनने की लड़ाई में चीन थोड़ी सी पारदर्शिता दिखाता और तथ्यों को दुनिया के तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझा करते हुए अपनी एक अहम भूमिका निभाता।

(लेखक वाणिज्य संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के बीकॉम प्रथम वर्ष के छात्र है।)

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