भारतीय कृषि और किसान संकटों के बीच काम करते हैं. कभी असमय बारिश तो कभी सूखा तो कभी बाढ़, पैदावार पर असर डालते हैं. किसानों को प्राकृतिक आपदाएं झेलनी पड़ती हैं. इसके चलते उनकी फसलों को नुकसान होता है. कृषि आय पर भी असर पड़ता है.
इसलिए जरूरी हो जाता है कि किसानों की उपज को नुकसान होने की स्थिति में कोर्इ व्यवस्था की जाए ताकि वे अगली खेती कर सकें. इस समस्या का जो सबसे उचित हल निकाला गया वह थी-‘फसल बीमा योजना’.
देश में फसल बीमा की शुरुआत 1972 में ही हो गर्इ थी. 1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने भी एक फसल योजना शुरू की थी. आगे चलकर और भी कर्इ योजनाएं आर्इं. इनमें नेशनल एग्रीकल्चरल इंश्योरेंस स्कीम (1999), संशोधित नेशनल एग्रीकल्चरल इंश्योरेंस स्कीम (2010) व वेदर बेस्ड क्रॉप इंश्योरेंस स्कीम जैसी फसल बीमा योजनाएं शामिल हैं.
हालांकि, पारदर्शिता में कमी, बीमा भुगतान में देरी और ज्यादा प्रीमियम की वजह से किसानों का भरोसा कभी भी फसल बीमा योजनाओं में नहीं बन सका .
इन समस्याओं को देखते हुए मौजूदा केंद्र सरकार ने नर्इ फसल बीमा योजना ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, 2016’ की शुरुआत की. इस योजना को 18 फरवरी, 2016 में शुरू किया गया था.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना मोबाइल तकनीकी आधारित योजना है. इसके सफल क्रियान्वयन में क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट, डिजिटल रूप से भूमि का ब्योरा और भूमि का खातों से जुड़ा होना मदद करते हैं.
इस योजना में पहले की योजनाओं की तरह प्रीमियम की ज्यादा दरें नहीं रखी गर्इ हैं. योजना के तहत खरीफ की फसल पर 2 फीसदी, रबी की फसल पर 1.5 फीसदी और बागवानी एवं वाणिज्यिक फसलों पर 5 फीसदी प्रीमियम की दर रखी गर्इ है.
प्रीमियम का बाकी बोझ केंद्र व राज्य सरकारें वहन करती हैं. यह इंश्योरेंस कृषि बीमा कंपनी बैंग और निजी इंश्योरेंस कंपनियों की मदद से किया जाता है. योजना के अंतर्गत सब्सिडी पर कोर्इ सीमा तय नहीं की गर्इ है. कोर्इ भी किसान जो खेती-किसानी कर रहा है, वह इस योजना का लाभ ले सकता है.
योजना के तहत दूसरे की जमीन पर खेती करने वाले किसान भी फसल का बीमा करा सकते हैं. इसके लिए उन्हें जमीन का अग्रीमेंट पेपर बीमा के समय देना होता है. किसान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत नुकसान की भरपाई के लिए बैंक या फिर संबधित इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम की राशि प्राप्त कर सकते है.
इस योजना के तहत विभिन्न आपदाओं में फसल को हुए नुकसान की भरपाई की जाती है.
1-बिजली गिरने से प्राकृतिक रूप से लगी आग में फसल नष्ट हो जाए.
2-आंधी, असमय मूसलाधार बरसात, चक्रवात और तूफान में नष्ट होने पर
3-बाढ़ और भूस्खलन में नुकसान होने पर
4-सूखा, फसल संबधित रोग के समय
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू करने का एक प्रमुख कारण पुरानी फसल योजनाओं के अंतर्गत कृषि भूमि और किसानों की भागीदारी में कमी को भी देखा जा सकता है.
इस योजना से पहले 2015-16 तक अन्य फसल बीमा योजनाओं के तहत कुल 5.36 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र और 4.75 करोड़ किसानों को शामिल किया गया था. वहीं, 2016-17 में प्रधानमंत्री फसल बीमा के लागू हो जाने के बाद कुल 5.72 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र और 5.72 करोड़ किसानों को दायरे में लाया जा चुका है.
सरकार ने इस योजना के लिए वर्ष 2016-17 में कुल 5,500 करोड़ रुपये की व्यवस्था की थी. इस दौरान 30 फीसदी भूमि को योजना के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया था.
इस योजना के तहत वर्ष 2017-18 में कुल 40 फीसदी कृषि भूमि और 2018-19 में 50 फीसदी भूमि को इसके दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए कुल 9000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गर्इ है.
वर्तमान में देश की कुल 30 फीसदी कृषि भूमि को इंश्योरेंस के दायरे में लाया गया है. यह अन्य देशों की तुलना में अभी काफी कम है. चीन में कुल 70 फीसदी कृषि भूमि तो अमेरीका में 90 फीसदी भूमि को फसल बीमा के दायरे में लाया जा चुका है.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की एक बड़ी समस्या प्रीमियम के मुकाबले क्लेम का कम होना है. वर्ष 2016-17 में कुल प्रीमियम 22,189.62 करोड़ रुपये था. वहीं, क्लेम लगभग आधा 12,948.98 करोड़ रुपये रहा. इस स्थिति में निजी इंश्योरेंस कंपनियां अधिक लाभ अर्जित कर लेती हैं.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को सफल बनाने के लिए मुख्य रूप से तीन विषयों पर ध्यान देना होगा.
1-योजना के लिए हर जिले में कुछ केंद्र बनाने होगें. 10-15 इंश्योरेंस एक्सपर्ट की टीम को हर केंद्र पर रखना होगा ताकि योजना के तहत इसकी प्रगति, समस्या और संभावनाओं का मूल्यांकन सही समय पर हो सके.
2- राज्य और केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके हिस्से का इंश्योरेंस प्रीमियम समय पर संबधित कंपनी को दिया जाए.
3- नवीनतम टेक्नोलॉजी का उपयोग करना होगा ताकि समयानुसार फसलों का सही मूल्यांकन हो सके. उदाहरण के रूप में हमें सेटेलाइट, ड्रोन, स्मार्टफोन इत्यादि जैसी तकनीकों को कृषि से जोड़ना होगा.
विक्रान्त सिंह
संस्थापक एवं अध्यक्ष, फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
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