
वर्ष 2019 बीत चुका है. वर्ष 2019 ने नागरिकता संशोधन कानून के पक्ष और विपक्ष की चर्चा के साथ शुरुआत करने जा रहा है. प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर के जरिए इसके स्पष्ट संदेश भी दे दिए हैं कि आने वाला वर्ष उनके लिए राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का वर्ष रहेगा. 2020 इस दशक के आखरी वर्ष की शुरुआत है. यह वर्ष भारत के एक बहुत बड़ी उम्मीद को पूरा करने का वर्ष है. हमने तय किया था कि वर्ष 2020 तक हम भारत से गरीबी खत्म कर देंगे और हर व्यक्ति को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा देंगे लेकिन अब यह मजाक सा लगता है. भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का तमगा खो चुकी है. उम्मीदों से भरा भारत आज सुस्ती और मंदी के बीच में कहीं खड़ा है. 2019 में भारतीय अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव की कहानी को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के बयान से ही शुरू करते हैं. एसोसिएशन ऑफ चेंबर ऑफ कॉमर्स की एक बैठक में प्रधानमंत्री जी ने बयान दिया कि उन्होंने अर्थव्यवस्था को संकट से निकाला है. वर्ष 2012-13 में यूपीए की सरकार थी और अर्थव्यवस्था बुरे दौर में थी. उनके अनुसार उन्होंने भारत को बैंकिंग संकट से बाहर निकाला है. लेकिन आंकड़े प्रधानमंत्री जी के दावों से बिल्कुल अलग कहानी कहते हैं. आज भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी के मुहाने पर खड़ी है. जीडीपी ग्रोथ रेट अपने 6 साल के न्यूनतम स्तर पर है. बेरोजगारी दर 45 साल के उच्च स्तर पर है. सरकार फिर भी कहती है कि वह 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बना देगी लेकिन क्या यह 4.5 फ़ीसदी की जीडीपी दर पर संभव है? वहीं यूके की सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च संस्था ने 2026 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर होने की संभावना जताई है. यानी कि सरकार के तय किए गए लक्ष्य से 2 वर्ष बाद. यह तभी संभव था जब हमारी नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ रेट 12 फ़ीसदी होती. लेकिन फिलहाल नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ रेट 15 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी है.
2019 की शुरुआत बजट के साथ करनी चाहिए. फरवरी महीने में वित्त मंत्री अरुण जेटली की अस्वस्थता के कारण गोयल ने अंतरिम बजट पेश किया था और यह अंतरिम बजट अपने आप में विशेष था क्योंकि इतिहास में कभी भी किसी अंतरिम बजट में इतनी नई योजनाओं की घोषणा नहीं की गई थी. उदाहरण के रूप में प्रधानमंत्री कृषि सम्मान योजना के लिए 75000 करोड रुपए का प्रावधान किया जाना. सरकार ने अंतरिम बजट के जरिए किसानों को प्रधानमंत्री कृषि सम्मान योजना के अंतर्गत ₹6000 का सालाना भुगतान करने की शुरुआत की थी. यह योजना वाकई में किसानों की हित में थी लेकिन अब लगता है कि ₹6000 कम है और सरकार को किसानों को ₹36000 का सालाना भुगतान करना चाहिए क्योंकि इस दौर में सबसे ज्यादा मंदी की मार ग्रामीण और कृषि क्षेत्र झेल रहा है. जब ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पैसा पहुंचेगा तब लोग मांग करेंगे और जब मांग करेंगे तो निवेश होगा. किसानों के ही संदर्भ में यह वर्ष डराने वाला था. इस वर्ष नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने किसानों की आत्महत्या के संदर्भ में 2016 की रिपोर्ट जारी किया. 2014 से लेकर 2016 यानी कि 3 वर्ष के बीच में कुल 36,341 किसानों ने आत्महत्या की है. 2015 के बाद से सरकार ने किसानों की आत्महत्या के संदर्भ में जारी होने वाली रिपोर्ट पर रोक लगा दी थी. वर्ष 2014 में 12,360 किसानों ने, वर्ष 2015 में 12,602 किसानों ने और वर्ष 2016 में 11,379 किसानों ने आत्महत्या की है. एनसीआरबी की 2016 की ‘एक्सिडेंटल डेथ एंड सुसाइड’ रिपोर्ट में सामने आया है कि हर महीने 948 या फिर कहे तो हर दिन 31 किसानों ने आत्महत्या की है.
अंतरिम बजट के जरिए ही सरकार ने प्रत्यक्ष कर में 5 लाख तक की आय वालों को छूट दिया था लेकिन इस छूट का भारतीय अर्थव्यवस्था में खपत और मांग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. इस वर्ष केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक गिरावट देख रहे मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर के लिए भी टैक्स रेट में कटौती की. मैन्युफ़ैक्चरिंग कंपनियां जो एक अक्तूबर 2019 के बाद पंजीकृत और मार्च 2023 से पहले अपना उत्पादन शुरू कर देती हैं, उनके लिए कॉरपोरेट टैक्स को 25% से 15% कर दिया गया. सरकार के इन कदमों से खजाने पर करीब 1 लाख 45 हजार करोड़ सालाना का भार पड़ेगा. लेकिन प्रश्न यह है कि जब अर्थव्यवस्था खपत आधारित सुस्ती को देख रही थी तब क्या कारपोरेट टैक्स में दी गई छूट फिर से नई जान फूंक पाती? कारपोरेट निवेश तब करते हैं जब बाजार में मांग होती है और मांग तब होती है जब खपत होता है. इसलिए ना तो बाजार में निवेश बढ़ा और ना ही खपत बढ़ी.
इस वर्ष की एक बड़ी घटना यह भी थी कि प्रधानमंत्री ने भारत को आरसेप में शामिल ना करने निर्णय लिया. देश में उठे विरोध के स्वरों को देखते हुए प्रधानमंत्री का यह निर्णय प्रशंसनीय था क्योंकि इस ट्रेड एग्रीमेंट की वजह से भारत के एक बहुत बड़े व्यापारी तबके को नुकसान झेलना पड़ सकता था. इसकी वज़ह से चीन अपना सामान और सस्ते दाम पर भारत में उपलब्ध करा सकता था.
वर्ष 2019 सरकार के द्वारा छिपाए जा रहे आंकड़ों के लिए भी जाना जाएगा. हाल ही में सरकार ने एनएसएसओ द्वारा तैयार किए गए उपभोक्ता खर्च सर्वेक्षण के आंकड़ों पर रोक लगा दी. वजह यह थी कि ये आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था में पिछले 40 साल में उपभोक्ताओं के खर्चे में आई सबसे बड़ी गिरावट को दर्शा रहे थे. सरकार ने तर्क दिया कि यह आंकड़े सही नहीं है इसलिए हम इसे जारी नहीं कर सकते हैं. शायद यह पहली बार हो रहा है था कि सरकार को अपने ही सरकारी आंकड़ों पर भरोसा नहीं था.
महंगाई, जिसको लेकर मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद से ही अपनी पीठ लगातार थपथपाती रही है. यह सही भी है क्योंकि जब सरकार ने 2014 में सत्ता संभाली थी तब महंगाई की दर 9 से 10 फ़ीसदी के बीच हुआ करती थी. शुरूआत के 5.5 वर्षों में महंगाई दर विशेषकर खुदरा महंगाई दर अपने न्यूनतम स्तर पर रही है लेकिन हाल ही में नवंबर में जारी आंकड़ों के अनुसार खुदरा महंगाई दर 5.54 फ़ीसदी के साथ 40 महीनें के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी थी.
2019 में ऑटोमोबाइल सेक्टर सबसे अधिक चर्चा का विषय बना रहा. कारण यह था कि एक बहुत बड़े स्तर पर कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की छटनी की और लंबे वक्त के लिए कंपनियों को बंद भी किया. पिछले 5 साल के ट्रेंड को देखें तो पैसेंजर व्हीकल की बिक्री -12.79% की दर से बढ़ी. तो वहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक पैमाना माने जाने वाले ट्रैक्टर की बिक्री दर में -13.19 फ़ीसदी की दर से बढ़ी. इंडेक्स आफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन के आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर महीने में इंडेक्स 3.8 फीसदी पर पहुंच चुका था. यह 8 सालों की सबसे बड़ी गिरावट थी. कुल प्रमुख आठ कोर सेक्टर में से सात कोर सेक्टर की ग्रोथ रेट निगेटिव हो चुकी है. भारत में क्रेडिट ग्रोथ रेट अपने 58 साल के सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है. कर्ज़ की वृद्धि में आई कमी का स्पष्ट मतलब यह होता है कि अर्थव्यवस्था में लोग खपत करने के लिए और व्यापारी निवेश करने के लिए कर्ज नहीं ले रहें हैं. अब जब निवेश कम होगा तो हम रोजगार की परिकल्पना नहीं कर सकते है.
आपको अक्सर सोशल मीडिया पर 2014 से पहले श्री नरेंद्र मोदी का दिया एक बयान दिखाई पड़ जाता होगा जिसमें वह कहते हैं कि रुपया का गिरना अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं हो सकते है. तो फिर इस वर्ष की आर्थिक नीतियों के मूल्यांकन में रुपया और डॉलर की तुलना को भी शामिल करते हैं. दिसंबर 2013 में $1= ₹61.795 हुआ करता था. आज दिसंबर 2019 में यह $1 = ₹71.35 हो चुका है. यानी कि डॉलर की तुलना में भारतीय रुपया और कमजोर हुआ है. वर्ष 2013 से लेकर 2019 के अंत तक कुल 15.46 फ़ीसदी की गिरावट भारतीय रुपए में डॉलर की तुलना में आई है. शायद प्रधानमंत्री जी को अब जवाब देना चाहिए कि रुपए का गिरना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत होता है या नहीं होता है?
बैंकिंग फ्रॉड ने इस वर्ष बैंकिंग व्यवस्था को बड़े स्तर पर प्रभावित किया. वित्त मंत्री ने सदन में जानकारी प्रदान की थी कि वर्ष 2019 में अप्रैल से लेकर सितंबर तक कुल 96000 करोड रुपए बैंकिंग फ्रॉड की वजह से बर्बाद हुए हैं. मोदी सरकार के पिछले 6 वर्षों में कुल 2,70,749 करोड रुपए बैंकिंग फ्रॉड में बर्बाद हो चुके हैं. यह सभी आंकड़े अर्थव्यवस्था की एक भयावह कहानी को रेखांकित करते हैं.
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा नवंबर महीने में जारी किए गए कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स को आधार माने तो अर्थव्यवस्था में लोगों का भरोसा लगातार टूटता जा रहा है. जहां नवंबर 2018 में कुल 45.2 फ़ीसदी लोगों का मानना था कि भारत की आर्थिक स्थिति बुरे दौर से गुजर रही है तो वहीं नवंबर 2019 में कुल 51.6 फ़ीसदी लोगों का मानना था कि भारत की आर्थिक स्थिति अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. इस रिपोर्ट के अनुसार नवंबर 2018 में कुल 47.2 लोगों का मानना था कि रोजगार को लेकर स्थिति बदतर हो चुकी है तो वहीं नवंबर 2019 में कुल 57.5 फ़ीसदी लोगों का मानना था कि भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार की स्थिति बदतर हो चुकी है.
मोदी सरकार जीएसटी को एक बड़े सुधार के रूप में पेश करती है. इस वर्ष कैग ने जीएसटी पर अपनी रिपोर्ट पेश की. इस रिपोर्ट के पैराग्राफ 2.1.1 में कैग ने कर संग्रह के संदर्भ में आंकड़े प्रस्तुत किए थे. रिपोर्ट के अनुसार जीएसटी लागू होने से पहले अप्रत्यक्ष कर संग्रह की वृद्धि दर 21.33% थी. जीएसटी लागू होने के बाद 2017-18 में घटकर 5.80% ही रह गई. जब जीएसटी लागू हुई थी तो उम्मीद की गई थी कि प्रति महीने 1.5 लाख करोड़ रुपए का जीएसटी कलेक्शन होगा. परंतु यह जानकर आश्चर्य होगा कि जीएसटी लागू होने के बाद केवल आठ बार ही कलेक्शन एक लाख करोड़ रुपए को छू पाया है. सरकार ने इस वित्त वर्ष में यह तय किया था कि वह जीएसटी के जरिए कुल 16.49 लाख करोड़ों रुपए एकत्रित करेगी. सितंबर महीने तक नेट जीएसटी कलेक्शन 6.07 लाख करोड़ रुपए का रहा था. इस हिसाब से आनेे वाले छह महीनों में सरकार को कुल 10 लाख 42 हजार करोड़ रुपए जुटाने हैं. औसत की बात करें तो हर महीने सरकार को 1,73,666 करोड़ रूपए जुटाने है जोकि कहीं से भी संभव नहीं है. ऊपर से वित्तीय घाटा पूरे वित्त वर्ष के लक्ष्य को पहले ही पूरा कर चुका है.
तो क्या इस वर्ष सिर्फ अर्थव्यवस्था के संदर्भ में नकारात्मक खबरें आती रही है? बिल्कुल नहीं. एक ऐसी खबर थी जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए था. यह वर्ष इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड की सफलता के रूप में देखा जानी चाहिए. सरकार में इस कानून की मदद से कुल ₹70, 800 करोड़ रुपए के फंसे कर्ज की रिकवरी की है.
वर्ष 2019 के अंतिम पड़ाव पर बैठकर हम यही निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि आने वाला वक्त भारत का ही हो. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि बदहाल होती भारतीय अर्थव्यवस्था को बचा लिया जाए. जारी आर्थिक सुस्ती अगर आर्थिक मंदी में बदल गई तो याद रखिए कि किसी भी अर्थव्यवस्था में मंदी के परिणाम हमेशा से भयावह रहे हैं.
(लेखक फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष और द इकोनॉमिक टाइम्स हिंदी के लिए आर्थिक मुद्दों पर स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)