विश्व आकाशस्पर्शी व्यक्तित्व के धनी महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मना रहा है। गांधी जी ने आधुनिक भारत की नींव दशकों पहले ही रख दी थी। स्वतंत्रता के बाद से ही भारत का विकासात्मक दर्शन बहुत ही अनूठा, एकतरफा और सर्वसम्मत रहा है क्योंकि इसमें 130 करोड़ कुशल आबादी का खजाना है, जो राष्ट्र की समृद्धि को बढ़ाने के लिए निरंतर ऊर्जावान प्रयास कर रहे हैं। लेकिन आजादी के 70 गौरवशाली वर्षों के बाद भी भारत को प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा अविकसित/ अल्प-विकसित देशों की श्रृंखला में ही रखा है। दरअसल, अधिकांश मान्यताप्राप्त अंतर्राष्ट्रीय संस्थान केवल दो व्यापक श्रेणियों में देशों को वर्गीकृत करते हैं। पहला- विकसित देश और दूसरा अल्प-विकसित देश।
आजादी के बाद से ही तत्कालीन सरकारों ने ‘जंग’ पड़ी विकास दर में तेजी लाने के लिए विविध योजनाएं तैयार की और निस्संदेह उन्होंने सकारात्मक संकेत भी दिखाए हैं। लेकिन अत्यधिक विविध जनसंख्या, विषम शैक्षिक स्तर, भुगतान का व्यापक (अ)संतुलन, भारी राजकोषीय घाटा, क्षेत्रीय असंतुलन, बहु-स्तरीय रणनीति तैयार करना, स्टीरियोटाइप/ रूढ़िवादी व्यवहार ने सरकार की चुनौतियों को कई गुना बढ़ा दिया है। परिणामस्वरूप, 1980 के दशक के उत्तरार्ध में भारत की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बिगड़ गई, जिसने सरकार को नई आर्थिक नीति- 1991 अपनाने के लिए मजबूर कर दिया। इस तरह के अप्राकृतिक पिछड़ेपन का प्रमुख कारण सरल और सीधा था-
- उपेक्षित कृषि क्षमता:
स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारत की कुल आबादी का लगभग 72 प्रतिशत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि क्षेत्र पर निर्भर था। परंपरा के अनुसार किसानों को इस तरह की गतिविधियों के लिए प्रशिक्षित भी किया गया था, लेकिन पैराशूट नीति-निर्माताओं ने कृषि संभावनाओं को नज़र अन्दाज़ किया और विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया। जवाब में, अर्थव्यवस्था दोनों वांछित उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रही। आज भी कृषि क्षमता को इसके इष्टतम के लिए प्रयोग नहीं किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण पिछड़ेपन, पलायन, माध्यमिक क्षेत्र के लिए कच्चे माल की अपर्याप्तता स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। - प्रति व्यक्ति आय और प्रवर्धित जनसंख्या वृद्धि दर:
भारतीयों की आय में लगातार वृद्धि हुई है, जो मुख्य रूप से उनके जीवन स्तर को बढ़ाने, व्यवहार और जीवन शैली को बढ़ाने में मददगार साबित हुई है। लेकिन जनसंख्या वृद्धि की रॉकेट दर ने भारत की प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने की संभावित क्षमता को बाधित किया है। आज, भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। वैश्विक मंदी के दौर में भी भारत सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है लेकिन भारत में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि विकसित देशों या अंतर्राष्ट्रीय मानकों की तुलना में अभी भी बहुत कम है। - सीमा पार आतंकवाद:
भारत लगभग दो शताब्दियों तक धूर्त अंग्रेज़ों की चपेट में रहा है। विभाजन के समय भी भारत को इस्लामाबाद से दिल्ली तक विनाशकारी रक्तपात का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा भारत को ना ‘पाक’ पड़ोसी के साथ तीन प्रमुख युद्ध लड़ना पड़ा, जिससे लाखों लोगों की जान और भारी संपत्ति का नुक़सान हुआ। भले ही, भारत ने इन युद्धों में प्रभावशाली जीत हासिल की हो लेकिन इसने भारत की आर्थिक विकास दर की स्थिरता को सीधे प्रभावित किया। खासकर, विवादित कश्मीरी मुद्दा। कश्मीर एक स्वर्ग राज्य था, लेकिन पिछले 70 वर्षों से सीमा के विपरीत तरफ से निर्बाध युद्धविराम उल्लंघन के कारण यह साधन-संपन्न क्षेत्र सिर्फ़ एक बंद गोदाम के रूप में ही रहा। - शिक्षा-चिकित्सा एवम् अनुसंधान और विकास
किसी भी राष्ट्र की सशक्त बुनियाद कुशल शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था ही बनाती है।देश के विकास में मानव संसाधन अपना सर्वोच्च योगदान तभी दे सकते है जब वह स्वयं को स्वस्थ्य एवं प्रभावी समझेंगे। दुर्भाग्य से आज़ादी के बाद से जितनी भी सरकारें आयी उन्होंने इन दोनो ही प्रमुख क्षेत्रों में बजट आवंटित करने में बेहद कंजूसी दिखाई। संभवतः उन्होंने इसे निवेश की जगह व्यय मान लिया। इसके फलस्वरूप आज भारत की प्राथमिक शिक्षा और चिकित्सा दोनो ही ख़स्ताहाल में है।
21वीं सदी नवपरिवर्तन, स्वचालन और उन्नयन की सदी है। साउथ कोरिया, जापान और चीन ने इसे समझते हुए अनुसंधान और विकास पर विशेष ध्यानकेंद्रित किया पर भारत ने इसमें भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुक़ाबले बहुत कम दिलचस्पी दिखायी है। - अनन्य विकास:
भारत का आर्थिक विकास रोडमैप स्वतंत्रता दिवस के बाद से अनन्य रहा है। उस समय, भारत की आधी आबादी यानी महिलाओं का मुख्यधारा में कोई विशेष स्थान नहीं था। इसका सीधा मतलब ये था कि ‘सोने की चिड़िया’ कहे जाने वाला देश सिर्फ़ एक पंख के साथ ही विकसित होने का सपना देख रहा था, लेकिन एक खंडित पंख के साथ कोई ज्यादा नहीं उड़ सकता था और भारत उसी का सर्वोत्तम गवाह है।
इसके अतिरिक्त भारत एक ऐसा देश है जो धर्म, जाति, पंथ, भाषा आदि जैसे अत्यधिक विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को विकसित करता है। लेकिन यह भी सत्य है कि भारतीय लोग धर्म और जाति के नाम पर बहुत अधिक असंगठित है। इस सुनियोजित झगड़े ने मुख्यधारा में भाग लेने वाले 50 प्रतिशत लोगों को भी मानसिक तौर पर विकलांग कर विभाजित कर दिया। जिससे भविष्य की मानव क्षमताओं के बीच भेद और असहमति बनी, जिसने देश के विकास के पहियों को आज तक सुचारू रूप से आगे नहीं बढ़ने दिया।
- कर-चोरी : भारत में अधिकांश लोगों को उम्मीद रहती है कि सरकार उन्हें सभी आवश्यक सुविधाएँ सुगमता से उपलब्ध कराये। लेकिन इसके लिए कर (टैक्स) के रूप में योगदान करने के लिए बहुत हिचकिचाते हैं। 2011 की आधिकारिक जनगणना ने भारत की जनसंख्या 121 करोड़ बताई। विडंबना यह है कि तब तक, शायद ही उनमें से 6-7 प्रतिशत लोग नियमित कर का भुगतान कर रहे थे। विमुद्रीकरण और जीएसटी को धन्यवाद जो अपने प्रमुख उद्देश्यों में विफल होने के बावजूद भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या को बढ़ाने में ज़रूर सफल रहा है।
आश्चर्यजनक रूप से, करोड़पति और लक्जरी कार खरीदारों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि भारत जैसे विशाल देश में आज भी आधिकारिक करदाताओं की संख्या संभावित आंकड़ों से काफी कम है। कर-संग्रह में कमी की वजह से सरकार भी विकास परियोजनाओं को गति नहीं दे पा रही। इसके अतिरिक्त इसने राजकोषीय संकट को और गहरा ही किया है। - समाज कल्याण विकास पैरामीटर:
आधुनिक भारत कई वैश्विक सामाजिक कल्याण विकास मापदंडों पर सबसे खराब रैंकिंग का सामना कर रहा है। कुछ प्रमुख पैरामीटर हैं: –
• विश्व खुशी सूचकांक (वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स) में भारत 156 देशों में 140 वें स्थान पर है। आश्चर्यजनक रूप से, यह पाकिस्तान से भी नीचे था।
• ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट में भारत 119 देशों में से 103 वें स्थान पर है।
• विश्व स्वास्थ्यप्रद राष्ट्रों में तो भारत 169 देशों में से 120 वें स्थान पर है।
• मानव विकास सूचकांक में भी भारत को 189 देशों के बीच 130 रैंक पर है।
उपरोक्त बिंदु यह स्पष्ट दर्शाते हैं कि भारत को एक विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में माना जा सकता है लेकिन वह निश्चित रूप से एक अल्प-विकसित राष्ट्र है।
भारत महात्मा गांधी की 150 वीं वर्षगांठ को गर्मजोशी से मना रहा है। उन्होंने स्वतंत्रता के दौर में ही राष्ट्र के विकास के लक्ष्य और साधन दोनो की पवित्रा की वकालत की थी। लेकिन राष्ट्र के प्रति राष्ट्रपिता का सपना आज भी अधूरा है। यह पिछले वर्षों में हमारे द्वारा की गई आपदाओं को फिर से भरने का सबसे अच्छा समय है, जो देश की वृद्धि और विकास में बाधक बनी हैं। आधुनिक भारत के लिए जनसांख्यिकी लाभांश के अतिरिक्त लाभ के साथ कई अनपेक्षित अवसर भी हैं और यदि इनका उचित प्रयोग किया जाता है, तो निसंदेह भारत आने वाले दशकों में दुनिया का नेतृत्व करेगा। यही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को असली श्रद्धांजलि होगी।
विपिन विहारी राम त्रिपाठी
मुख्य सलाहकार
फ़ाइनेंस एंड इकोनामिक्स थिंक काउन्सिल
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय