आज अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस है. कहते हैं कि दुनिया की हर मजबूत से मजबूत चीज मजदूरों के पसीने से तैयार होती है. जब मजदूर अपना श्रम बेचता है तो हमारी जरूरतें पूरी होती हैं. हम जो दाम चुकाते हैं वह कभी भी उसके श्रम के बराबर नहीं होता है. अगर भरोसा ना हो तो उसी पैसे में वही काम खुद से करने का प्रयास कर लीजिए. मजदूरों ने आपको घर, आपके बच्चों के लिए स्कूल, गाड़ियों के लिए पुल, बड़ी-बड़ी इमारतें, बड़े-बड़े कारखाने, बड़ी और चौंडी सड़कें, खेतों में अनाज आदि सब कुछ दिया है. आज का दिन इनको धन्यवाद कहने का है. कम से कम ‘मजदूर दिवस’ के रूप में ही सही आज पूरी दुनिया को मजदूरों के हक और सम्मान पर सोचने का है.
दुनिया भर में 1 मई को “अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस” मनाया जाता है. पहली बार 1 मई 1886 को अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया गया था. भारत में पहली बार 1 मई 1923 को ‘लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान’ के नेता सिंगरावेलू चेट्यार के नेतृत्व में मजदूर दिवस की शुरुआत हुई थी.
कोविड-19 के जारी वैश्विक संकट के बीच दुनिया भर में ‘प्रवासी मजदूरों’ की चर्चा सबसे अधिक की जा रही है. अखबारों में इनकी समस्याओं पर लेख लिखे जा रहे हैं. टेलीविजन मीडिया में इनके पलायन की तस्वीरें दिखाई जा रही हैं. यह कहानी पूरी दुनिया की है लेकिन एक बड़ी मजदूर आबादी वाले देश के रूप में भारत इसका केंद्रीय मुद्दा है. भारत प्रवासी मजदूरों के हो रहे पलायन की गंभीर समस्या से सबसे अधिक प्रभावित हैं. केंद्र सरकार के साथ-साथ देश की तमाम राज्य सरकारों ने मजदूरों को भोजन और आवास के लिए आश्वस्त तो किया है लेकिन यह जारी संकट महज आश्वासन का नहीं बल्कि इस संकट के बाद इन प्रवासी मजदूरों को खत्म करने आ रही भयावह आर्थिक स्थिति का है.

हाल ही में विश्व बैंक ने “कोविड-19- क्राइसिस थ्रू ए माइग्रेशन लेंस” नामक रिपोर्ट प्रकाशित की है. यह पूरी रिपोर्ट प्रवासी मजदूरों की समस्याओं पर केंद्रित है. विश्व बैंक की इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले 40 दिनों से जारी देशव्यापी लॉकडाउन ने लगभग चार करोड़ प्रवासी मजदूरों को बुरी तरह प्रभावित किया है. अभी यह समस्या मूलतः आंतरिक प्रवास की है, लेकिन निकट भविष्य में भारत के दृष्टिकोण से यह एक बड़े अंतरराष्ट्रीय प्रवास का भी रूप धारण कर लेगी, क्योंकि भारत की एक बहुत बड़ी मजदूर आबादी गल्फ देशों में काम करती है. इन देशों में यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के अधिकांश मजदूर काम कर रहे हैं. यह संभव है कि जब पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिति कमजोर होगी तो तमाम मुल्क इन मजदूरों को वापिस इनके स्वदेश भेजने का कार्य कर सकते हैं. भारत को इस समस्या के लिए तैयारी तत्काल प्रभाव से चालू करनी होगी.
वहीं एक दूसरी रिपोर्ट है जिसे “अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन” ने प्रकाशित किया है. इस रिपोर्ट को आधार मानें तो कोविड-19 के जारी संकट और उससे निपटने के लिए भारत में चल रहे देशव्यापी लॉकडाउन के कारण असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 40 करोड़ लोगों की आजीविका प्रभावित होने की संभावना है. इस संकट की वजह से बड़े स्तर पर मजदूरों ने अपनी नौकरियां गंवाई है और नौकरियों के जाने के कारण उनकी दैनिक आय पर बुरा प्रभाव पड़ा है. संभावना है कि अगर कोविड-19 का संकट और लंबा चला तो भारत की यह बड़ी मजदूर आबादी गरीबी के दुष्चक्र में फंस जाएगी. भारत का एक बड़ा मजदूर तबका हमेशा से ही बेहतर स्वास्थ्य सेवा, बेहतर सामाजिक वातावरण, पौष्टिक भोजन, साफ पानी, स्वस्थ जीवनशैली, उपयोगी शिक्षा व्यवस्था, आवास जैसी बुनियादी चीजों से बहुत दूर रहा है. संकट की स्थिति में यह तबका पहले से कहीं अधिक कमजोर होगा और आने वाली स्थिति जारी हेल्थ इमरजेंसी से ज्यादा भयावह हो जाएगी.
इसलिए इस बार के मजदूर दिवस को इन प्रवासी मजदूरों की चिंता और इनके उत्थान के लिए मनाया जाना चाहिए. तेजी से बदल रही दुनिया को कंप्यूटर से आगे बढ़कर इन मजदूरों के किए गए योगदान को सलाम करने की जरूरत है. आज इस कठिन समय में पूरी दुनिया को एक होकर इनकी जरूरतों पर काम करने की जरूरत है.
इनका अस्तित्व हमारे अपने अस्तित्व का संकट हो सकता है. आज इन प्रवासी मजदूरों के हाथों को थामने का वक्त है. इनके परिवार को भोजन उपलब्ध कराने का वक्त है. इनके बच्चों को इस संकट के बाद अच्छी शिक्षा उपलब्ध हो ऐसा प्रण लेने का अवसर है. इस संकट की घड़ी में भी अपने खेतों में अनाज पैदा करने वाले मजदूर किसानों को सलाम करने का अवसर है.
आज अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर फ़ैज़ का लिखा एक शेर है जो मजदूरों के लिए पढ़ा जाना चाहिए-
हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे,
इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।
(लेखक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र और फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष है)