कोरोना की लड़ाई में भारतीय रेलवे की भूमिका

लेखक- विपिन बिहारी राम त्रिपाठी

कोरोना महामारी से भारत ने जो लड़ाई लड़ी है उसमें चिकित्सकों, सहायक स्वास्थ्य कर्मियों, वैज्ञानिकों, सुरक्षा कर्मियों और स्वच्छता कर्मियों ने कोरोना वॉरीयर्स के रूप में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। लेकिन इन सब से इतर भारतीय रेल ने भी इस अभूतपूर्व मानवीय संकट के संघर्ष के दौर में सराहनीय भूमिका निभाई है।

जब सड़के बंद थी और ट्रकों के पहिए भी थम गये थे, ऐसी विषम परिस्थिति में भारतीय रेल ने खाद्य सामग्री, चिकित्सकीय उपकरण, पार्सल एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने का काम किया है। अचानक किये गये लॉकडाउन में सबसे बड़ी चुनौती लोगों तक खाद्य सामग्री निर्बाध्य उपलब्ध कराना था। इस आपात संकट से निपटने के लिये भारतीय रेलवे ने अन्नपूर्णा स्पेशल और जय किसान स्पेशल नाम से दो ट्रेनों को चलाने का काम किया। इस आपातकाल जैसी स्थिति से निपटने के लिए इन दोनों ही ट्रेनों ने अपनी सामान्य से दुगनी क्षमता के साथ खाद्य सामग्री को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का कार्य किया है। यहीं नहीं, इस अदृश्य शत्रु ने सरकार के सामने अचानक से एक आर्थिक संकट भी खड़ा कर दिया था। शुरूआती दिनों में ही भारतीय रेल ने इस महामारी से निपटने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए पीएम केयर फंड में 151 करोड़ रुपए भी जमा करने का कार्य किया था।

जब देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही थी और हमारे उपलब्ध चिकित्सकीय संसाधन इस क्रूर चिकित्सकीय आपदा से लड़ने के लिए अपर्याप्त लग रहे थे, ऐसे समय में रेलवे ने अपने 15,000 से अधिक रेल कोचों को आइसोलेशन बेड के रूप में बदलने का कलात्मक कार्य कर चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था को महत्वपूर्ण  बल देने का काम किया है। खास बात यह है कि इन सभी बेडों पर मरीजों के लिए ऑक्सीजन और अन्य चिकित्सकीय उपकरणों के लिए उचित व्यवस्था की गयी है।  इसके साथ ही साथ देशभर में फैले रेलवे के 586 चिकित्सकीय यूनिट, 56 क्षेत्रीय चिकित्सालयों और 45 उप-क्षेत्रीय चिकित्सालयों के माध्यम से कोरोना मरीज़ों के लिए 5000 बेडों की तत्काल व्यवस्था की गई।

रेलवे ने अपने 15,000 से अधिक रेल कोचों को आइसोलेशन बेड के रूप में बदला है।

कोरोना से लड़ाई में हमारे फर्स्ट लाइन वॉरियर्स की सुरक्षा भी एक बड़ी चुनौती थी। यकायक आयी इस महामारी ने देश के सामने चौतरफ़ा संकट खड़े कर दिये थे। जिसमें एक बड़ा संकट आया था कि इस छूने से फैलने वाली बीमारी से इलाज करते समय अपने कोरोना वारियर्स को कैसे सुरक्षित रखा जाए? ये इसलिए महत्वपूर्ण प्रश्न था क्यूँकि इनकी पूर्ण सुरक्षा ही भारत की आगे की लड़ाई का रास्ता साफ़ करती। ऐसे में देश के स्वास्थ्य संस्थानों में डॉक्टर और मेडिकल टीम के लिए पीपीई किट की भारी कमी, हैंड सेनीटाइजर्स की कमी और आवश्यक फ़ेस मास्क की अनुपलब्धता ने इस लड़ाई को और कठिन बना दिया था। लेकिन रेलवे ने अपने औपचारिक कार्यों के साथ -साथ इस लॉकडाउन में देश के आम नागरिकों की जान बचाने के लिए इस चुनौती को भी अपने कंधे पर लिया और 1 महीने के अंदर मरीजों, डॉक्टरों और आम जनता के लिए भारी संख्या में इन अति आवश्यक संसाधनों को बनाने का बेड़ा उठा लिया। इस अनौपचारिक प्रयास से देश को औपचारिक मदद मिली। इस अनूठी पहल में टेक्सटाइल मंत्रालय ने भी रेलवे का पूरा सहयोग किया है।

रेलवे का योगदान इस लिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि जब कोरोनावायरस के शुरुआती लक्षण भारत में देखने को मिले थे, उस वक्त भारत की स्वास्थ्य संरचना तैयार नहीं थी। लोग डरे हुए थे। इतनी बड़ी आबादी को इतने कम समय में सुनियोजित ढंग से उचित व्यवस्थाओं में संभालना, उनके भोजन की व्यवस्था करना, स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करना और तमाम चिकित्सकीय उपकरणों को आवश्यकतानुसार एक राज्य से दूसरे राज्य तक ले जाने का काम इतना आसान नहीं था।  जिस दौर में लोग अपने घरों से निकलने के लिए तैयार नहीं थे, उस दौर में रेलवे के कर्मचारियों ने पूरी निष्ठा के साथ कार्य करते हुए बिना रुके बिना डरे देश सेवा में अपना सब कुछ न्योछावर किया है। शायद यह भी एक राष्ट्रभक्ति ही है और जरूरी नहीं कि हम देश की सीमाओं पर रह कर ही देश की सेवा करें बल्कि हम जिस क्षेत्र में जो भी कार्य करते हैं, उस क्षेत्र में अपना सर्वोच्च योगदान दे करके अपने देश की सेवा कर सकते हैं।

इस लड़ाई में एक दौर ऐसा भी आया जब प्रवासी मजदूरों का संयम टूटने लगा था और वो सरकार के किसी भी निर्देश का पालन करने को तैयार नहीं थे और किसी भी तरह अपने घर को वापस लौटने को मजबूर थे। वो मजबूर थे क्योंकि फैक्ट्रियों पर अनिश्चितक़ालीन ताले थे, उनकी जेब खाली थी और ऐसी स्थिति में उनका ना चाहते हुए भी सड़कों पर आ जाना स्वाभाविक लग रहा था। जब प्रवासी मज़दूर हजारों किलोमीटर पैदल ही अपने घर के लिये निकल गये और उनके इस दयनीय सफर को देखकर जनता के मन में एक भावनात्मक आक्रोश पैदा होने लगा तब भी रेलवे ने ही अपनी तरफ से पहल करते हुए इन लाखों मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी का बेड़ा अपने कंधों पर लेने का फैसला किया । अभी तक रेलवे ने लगभग 50 लाख प्रवासी मजदूरों को देश के अलग-अलग राज्यों से उनके गृह राज्य तक ले जाने का कार्य किया है। यही नहीं, प्रवासी मजदूरों को स्टेशन पहुंचने पर रेलवे और संबंधित प्राधिकरण द्वारा खाने-पीने की भी उचित व्यवस्था सुनिश्चित की गयी। इतनी बड़ी संख्या को विस्थापित करना किसी चुनौती से कम नहीं था पर भारतीय रेल ने इस कठिन चुनौती को बखूबी निभाने का कार्य किया है।

प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने में रेलवे ने बहुत बड़ी मदद की है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब पूरा देश इस अभूतपूर्व चिकित्सकीय आपदा को चुनौती के तौर पर देख रहा था, उस समय रेलवे ने इसे अपनी संरचना को और सशक्त बनाने के अवसर के रूप में देखा। लॉकडाउन के दौरान ज़्यादातर लोग घरों में बंद थे और भविष्य की योजनायें अनिश्चितताओं के गर्भ में थी।  ऐसे समय में रेलवे ने अपने विशाल नेटवर्क को और सुदृढ़ करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने का साहसिक कार्य किया।  इसके अंतर्गत रेलवे के विशाल नेटवर्क के ट्रैक प्रबंधन, ब्रिज निर्माण एवं मेंटेनेंस, लाइन डबलिंग और स्टेशनों के नवनिर्माण को दोगुनी गति देने कार्य किया है।

विनाशकारी कोरोना से महाभारत में रेलवे ने एक योद्धा की तरह डटकर सरकार को पूरा सहयोग दिया है ,जिससे इस परीक्षा की घड़ी में भी आमजन को कम से कम समस्याओं का सामना करना पड़े। आज नहीं तो कल यह निश्चित है की कोरोना हारेगा और देश जीतेगा। लेकिन इस कठिन दौर में भारतीय रेलवे द्वारा किए गए इस अभूतपूर्व और असाधारण सहयोग को कभी भूला नहीं जा सकता।

(लेखक फ़ाइनेन्स एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउन्सिल के मुख्य सलाहकार है)

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