बाल शोषण: मनुष्य का सामाजिक व नैतिक पतन

लेखक- तारिक सिद्दीक़ी

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः” मनुस्मृति का यह श्लोक आज भी भारतीय जनमानस के जुबान पे रहता है जिसका अर्थ है ‘जहां स्त्रीजाति का आदर-सम्मान होता है, उनकी आवश्यकताओं-अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार पर देवतागण प्रसन्न रहते हैं।‘ भारतीय संस्कृति में स्त्रियों को हमेशा से ऊंचा स्थान प्राप्त है। परंतु तेजी से बदलते हुए समाज ने आज जैसे अपनी संस्कृति से दूरी सी बना ली है।

22 जून को कानपुर के बालिका शेल्टर होम (राजकीय संरक्षण गृह) से जो खबर आयी थी वो अत्यंत ही दुखद और मानव जाति को झकझोर देने वाली है। कानपुर शेल्टर होम में जहा 171 लड़कियां रहती है, वहां 57 लड़कियां कोरोना पॉजिटिव मिली है । इसके अलावा 5 लड़कियां गर्भवती और 1 एचआईवी संक्रमित। ये खबर बाहर आते ही पक्ष-विपक्ष की तरफ से लानत मलानात जारी थी। हालांकि यूपी सरकार ने जांच के आदेश दे दिए थे, परन्तु ये सवाल बना रहेगा कि आखिर कहा चूक हुई थी और इस अमानवीय कृत्य के लिए ज़िम्मेदार कौन थे। कुछ महीने पहले बिहार के मुजफ्फरपुर में भी एक ऐसी घटना हुई थी, जिसमें न्यायालय की निगरानी में जांच जारी है। राजकीय संरक्षण गृह और सुधार गृह से आते हुए ये खबर आम जनमानस के मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। उम्मीद है की इसकी निष्पक्षता से जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कारवाही होगी।

ऐसा कतई नहीं है की ये हालात सिर्फ भारत में ही है, ऐसे हालात विश्व के तमाम देशों में है जंहा कम उम्र की बालिकाएं और बच्चो के साथ के शोषण होता है। 18 जून को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एक रिपोर्ट पेश किया जिसमें नाबालिग बच्चों के शोषण का आंकड़ा दिया गया है। WHO ने कहा कि तकरीबन 1 अरब (1 Billion) बच्चो का मानसिक, शारीरिक, और यौन शोषण हर साल दुनियाभर में होता है मतलब दो में से हर एक बच्चा किसी ना किसी तरह के शोषण का शिकार है।

तकरीबन 12 करोड़ लड़कियां, जिनकी उम्र 20 वर्ष से कम है वो यौन शोषण का शिकार होती है। यह रिपोर्ट आगे कहती है कि वह वस्यक जो अपने बचपन में 4 या उससे अधिक बार कठिनाइयों से गुज़रे हैं, उनमें 7 गुणा ज्यादा अंतर्सम्बन्ध हिंसा (interpersonal violence) के शामिल होने का खतरा रहता है और साथ ही वो एक नार्मल वस्यक के मुकाबले 30 गुना ज्यादा आत्महत्या की कोशिश कर सकते है।

इसमें छात्र और छात्राओं के विषय में बताया गया है कि हर 3 में से 1 छात्र किसी ना किसी तरह के शोषण का शिकार हुआ है, जिसमें 11 से 15 बरस के छात्र 35 प्रतिशत प्रताणित हुए है तो छात्राएं 30 प्रतिशत। इस रिपोर्ट में 2 से 4 वर्ष के बच्चों के लिए लिखा है कि वो अपने माता पिता के द्वारा शारीरिक और मानसिक सजा के शिकार होते जिनकी संख्या तकरीबन 30 करोड़ है।

WHO के इन आंकड़ों को पढ़कर आप ये समझ ही गए होंगे की अभी भी समाज में सुधार की आवश्यकता है। तेजी से परिवर्तित होते इस समाज में हमें अपने मूल्यों को बनाए रखना है तथा व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारियों को न्यायपूर्ण ढंग से निभाना है।


(लेखक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र हैं)

Leave a Comment