यूक्रेन संकट : युद्ध या विश्वयुद्ध

विश्वयुद्ध की जननी कहीं जाने वाली भूमि यूरोप में फिर एक बार युद्ध आरंभ हो चुका है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आदेशानुसार रूसी सैनिकों ने तीनों दिशाओं (उत्तर में बेलारूस, पूर्व में लुहान्स्क, दक्षिण में रूस अतिक्रमण क्रीमिया) से यूक्रेन की सीमा पर भूमि, वायु और समुद्र द्वारा आक्रमण किया। स्थिति को स्पष्ट करते हुए बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने कहा कि उनकी देश की सेना इस हमले में शामिल नहीं है लेकिन जरूरत पड़ने पर हो सकती है। मास्को ने सबसे पहले यूक्रेन के 11 सैन्य हवाई क्षेत्र समेत 118 सैन्य बुनियादी ढांचे और सीमा रक्षक इकाइयों पर हमला किया।

यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की ने ट्वीट किया, “यूक्रेन अपनी स्वतंत्रता नहीं छोड़ेगा। रूस बुराई की राह पर चल पड़ा है, लेकिन यूक्रेन अपना बचाव कर रहा है”। यूक्रेन ने रूस के साथ सभी राजनैतिक संबंध तोड़ दिए और मार्शल लॉ घोषित कर दिया है जिसमें कहा गया कि जो कोई भी हथियार चाहता है उसे हथियार दिए जाएंगे। कई पड़ोसी देशों ने बड़ी संख्या में शरणार्थियों को लेने की तैयारी शुरू कर दी है। यूक्रेन के पड़ोसी देश मोल्दोवा ने अकेले 4000 से अधिक शरणार्थियों को शरण दिया हैं।

*युद्ध : अप्रत्याशित या प्रत्याशित*

यूक्रेन के पूर्वी सीमा पर 1.5 लाख से अधिक रूसी सैनिकों की तैनाती को देखते हुए अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, यूरोपियन संघ समेत अन्य देशों ने यूक्रेन में अभूतपूर्व हमले की संकेत दिया था। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने दावा किया की रूस यूक्रेन पर 16 फरवरी को हमला कर सकता है, अमेरिका की राय में मिसाइल हमलों से पहले साइबर हमला हो सकता है। साइबर हमला आधुनिक युद्ध तकनीक है जिसे प्रतिद्वंदी को असहाय/असुरक्षित दिखाने और उकसाने के लिए किया जाता है। यूक्रेन के खिलाफ हुए साइबर हमले में वित्तीय संस्थान और सरकारी एजेन्सी को शिकार बनाया गया है। साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि हमलावरों ने एक परिष्कृत “वाईपर” मैलवेयर का उपयोग किया है जो संक्रमित मशीनों के डाटा को नष्ट कर देता है।
पश्चिमी मीडिया रिपोर्टों की भविष्यवाणी पर संदेह की प्रतिक्रिया देते हुए यूक्रेनियन राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि 16 फरवरी को यूक्रेन “डे ऑफ यूनिटी” के तौर मनाएगा, पूरा देश राष्ट्रीय ध्वज फहराए, सुबह 10 बजे राष्ट्रगान गाने गाए और इस तरह पूरी दुनिया को अपनी एकता दिखायेगा।

हालांकि 21 फरवरी को पुतिन ने यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र से दो स्वतंत्र राष्ट्र ‘डोनेत्स्क पीपल्स रिपब्लिक’ और ‘लुगांस्क पीपल्स रिपब्लिक’ को मान्यता देकर यूक्रेन को तीन हिस्सो मे विभाजत किया तो लगा कि रूस फिर 2014 का इतिहास दोहरा चुका है।
लेकिन विभाजन के तुरंत बाद अपनी सेना को आक्रमण करने की हरी झंडी दिखाते हुए पुतिन की यह प्रत्याशित-अप्रत्याशित घटनाक्रम यह संकेत दे रही है कि पुतिन की महत्वाकांक्षा अभी समाप्त नही हुई है।

*इतिहास स्वयं को दोहराता है*

हमने अनवरत सुना है कि इतिहास स्वयं को दोहराता है, अपितु इतिहास इतने क्रमबद्ध ढंग से स्वयं को दोहरायेगा, इसकी कल्पना करना मुश्किल है। सन् 1919 प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति में जर्मनी को वर्साय की संधि के तहत अपमानित किया गया था जिसका बदला हिटलर ने बाद मे लिया। उसी प्रकार शीतयुद्ध का अन्त भी मैत्रीपूर्वक तरीके से नही हुआ। सोवियत संघ के विघटन के बाद ईस्टर्न-ब्लाक पश्चिम की ओर खिसकने लगा। वही रूसी साम्राज्य में कम्युनिस्ट विचारधारा का अभ्युदय एक बार फिर ‘पारदर्शिता’ और ‘पुनर्गठन’ के मंत्रोच्चार के साथ हुआ। नाटो का लगातार पूर्वी विस्तार को रूस हमेशा अपना राष्ट्रगौरव अपमान समझता रहा है।

द्वितीय विश्व युद्ध के शुरुआत में जर्मनी ने ऑस्ट्रिया पर चढ़ाई की और आज यूक्रेन मे रूस द्वारा हमलें की बुनियाद भाषा ही है। ऑस्ट्रिया में जर्मनभाषी और आज के यूक्रेन में रूसीभाषी की संख्या इतनी बड़ी है कि यह परिकल्पना करना कठिन है कि जर्मनी और रूस भिन्न राष्ट्र है। हिटलर की फौज वियना मे घुसी तो ऑस्ट्रियावासियो ने उनका स्वागत किया क्योंकि वह स्वयं को जर्मनी का हिस्सा समझते थे उसी प्रकार यूक्रेन के क्षेत्र में रूसी सेना का सम्मान देखा जा रहा है।

विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री चेम्बरलेन ने ‘म्युनिख पैक्ट’ के बाद हिटलर को हरी झंडी दे दी थी कि वो चेकोस्लोवाकिया को भी अपने में मिला ले। हिटलर की तुलना में चेम्बरलेन एक कमजोर राष्ट्र नायक सिद्ध हुआ जिस प्रकार आज अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का कद पुतिन के सामने छोटा दिख रहा है। वही हिटलर चेकोस्लोवाकिया के जीत के बाद अपनी योग्यता का भरोसा करते हुए पोलैंड पर चढ़ाई कर दिया। प्रश्न यह है कि क्या रूस क्रीमिया और यूक्रेन के बाद पुतिन की महत्वकांक्षी पूरी हो जाएगी? अगर नहीं, तो फिर अमेरिका को उग्र राष्ट्रनायक का चयन करना होगा जैसा ब्रिटेन ने चेम्बरलेन के बाद चर्चिल को चुना था जिसके बाद द्वंद्व युद्ध हो सका। हालांकि, यह दुनिया के हित में
है कि अमेरिका का राष्ट्रपति उग्र व्यक्तित्व का धनी नहीं है।

*नाटो पर विश्वासघात का आरोप*

पुतिन ने दावा किया है कि 9 फरवरी 1990 को सोवियत नेता मिकाइल गोर्बाचोव और जेम्स बेकर के बीच हुए बातचीत में बेकर ने आश्वासन दिया था रूस अगर जर्मनी के एकीकरण को समर्थन देता है तो नाटो पूर्व की ओर 1 इंच भी आगे नहीं बढ़ेगा और नोटों पर बेशर्मी से धोखा देने का आरोप लगाया है। हालांकि सितम्बर 1990 में रूस और पश्चिमी देशों द्वारा हस्ताक्षरित अंतिम समझौता केवल जर्मन के एकीकरण पर लागू होता है।

शीत युद्ध के बाद के इतिहासकार मैरी सरोटे अपनी पुस्तक “नॉट वन इंच- अमेरिका, रूस एड द मेकिंग ऑफ द कोल्ड वाॅर स्टेलमेट” में निष्कर्ष निकालती हैं की विश्वासघात का आरोप असत्य है क्योंकि ऐसा कोई लिखित समझौता नहीं हुआ था लेकिन मनोवैज्ञानिक तौर पर यह सत्य है। मैरी कहती है कि जब आप सबूतों को देखेंगे तो जो हुआ वह कहीं बीच में है।

( प्रभात मिश्रा काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और काउंसिल के सदस्य है)

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