एशिया की दो महाशक्तियां भारत और चीन सीमा विवाद के बीच आमने-सामने मौजूद है। दोनों ही मुल्क दुनिया में एक मजबूत सैन्य शक्ति वाले मुल्क के रूप में जाने जाते हैं। वैश्विक स्तर पर चर्चा के केंद्र में एशिया की यही दोनों शक्तियां मौजूद रहती हैं, लेकिन एशिया में इन दोनों मुल्कों के बीच एक तीसरा मुल्क भी है जिसने अपनी अलग राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक पहचान स्थापित की है। इस मुल्क की आर्थिक सफलता आज पूरे विश्व के लिए एक नए प्रतिमान के रूप में स्थापित हो रही है। यह मुल्क है- बांग्लादेश।
बांग्लादेश की आजादी का पूरा श्रेय भारत को दिया जाता है। सन 1971 में भारत ने पाकिस्तान से युद्ध जीतकर ‘पूर्वी पाकिस्तान’ को बांग्लादेश के रूप में एक अलग राष्ट्र स्थापित किया था। सर्वप्रथम बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता भी दी थी।

शुरुआती दिनों में बांग्लादेश एक बेहद ही गरीब और छोटे-मझोले उद्योगों का देश था। परंतु आज यह विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर रहा है। जब वैश्विक अर्थव्यवस्था एक मंदी के दौर से गुजर रही है, उस दौरान भी बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सकारात्मक संभावनाएं जताई जा रही हैं। लेकिन यह कैसे संभव हुआ? एक छोटा सा देश जिसकी कुल आबादी 17 करोड़ है, आज वह एशिया के साथ-साथ विश्व की सबसे तेज से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हो रहा है। प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने बांग्लादेश को ‘साउथ एशिया’ का रोल मॉडल लिखा है।
बांग्लादेश की आज यह मजबूत आर्थिक स्थिति उसके तीन मजबूत स्तंभों पर निर्भर करती है।
1- सफल कृषि व्यवस्था
2- टेक्सटाइल सेक्टर के निर्यात में मिली अभूतपूर्व कामयाबी
3- विभिन्न देशों से बांग्लादेश को मिलने वाली सहायता राशि।
बांग्लादेश की कृषि क्षेत्र में सफलता की कहानी देखिए। आज बांग्लादेश विश्व में चावल का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है, जूट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, आम का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है, सब्जियों का पांचवा सबसे बड़ा उत्पादक है और मछलियों का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है।

बांग्लादेश की इस नव आर्थिक समृद्धि की पूरी बुनियाद उसके टेक्सटाइल उद्योगों पर निर्भर करती है। आज बांग्लादेश दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टेक्सटाइल गारमेंट्स निर्यातक देश है। वर्तमान में चीन विश्व में टेक्सटाइल निर्यात के क्षेत्र में अग्रणी है। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के कुल निर्यात का 81 फ़ीसदी हिस्सा अकेले इस क्षेत्र से होता है। यह सेक्टर बांग्लादेश की तकरीबन दो करोड़ आबादी को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराता है। बांग्लादेश के टेक्सटाइल सेक्टर में लाभ का यह स्तर है कि कोई व्यक्ति यहां निवेश करके महज 3 से 5 वर्षों में लाभ कमा सकता है। टेक्सटाइल उद्योगों की कामयाबी ने बांग्लादेश के आत्मविश्वास को इस स्तर पर पहुंचा दिया है कि वह वर्ष 2020-21 तक मध्य आय वाले देशों के समूह में शामिल होने की बात कह रहा है।

बांग्लादेश के टेक्सटाइल बाजार में सस्ते श्रम के साथ-साथ स्किल श्रम भी उपलब्ध है। बांग्लादेश के 37 निजी और सरकारी विश्वविद्यालय, टेक्सटाइल सेक्टर के लिए विशेष स्नातक तैयार कर रहे हैं। इसकी वजह से टेक्सटाइल बाजार में क्षेत्र विशेष की संपूर्ण जानकारी से परिपूर्ण कार्यबल सदैव मौजूद रहता है। बांग्लादेश ‘टेक्सटाइल सेक्टर’ में काफी विलंब से आया और महत्वपूर्ण बात यह है कि वह इस सेक्टर में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल (कॉटन) का कोई बहुत बड़ा उत्पादक देश भी नहीं है, बल्कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा कॉटन उत्पादक देश है। आज बांग्लादेशी गारमेंट्स विदेशी बाजार में अन्य देशों की तुलना में सस्ता पड़ता है। यूरोप और यूएस जैसे बड़े बाजारों में, अन्य देशों की तुलना में बांग्लादेशी गारमेंट्स 10 से 20 फ़ीसदी सस्ते पड़ते हैं। बांग्लादेश ने तकनीक और नवाचार की बुनियाद पर इस सेक्टर में प्रति शिफ्ट उत्पादन में भी बढ़ोतरी हासिल कर ली है। जहां भारतीय कंपनियां एक शिफ्ट में 10 से 12 गारमेंट्स पैदा करती है, वहीं बांग्लादेश औसतन एक शिफ्ट में 19-20 गारमेंट्स पैदा करता है। (यह एक औसत पैमाना है)

बांग्लादेश दुनिया के तकरीबन 52 देशों के साथ किए गए द्विपक्षीय व्यापार करारों की वजह से ड्यूटी फ्री व्यापार का लाभ उठाता है। इनमें प्रमुख रुप से यूरोपियन यूनियन, संयुक्त राज्य अमेरिका, आस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड, जापान, रूस, नार्वे, न्यूजीलैंड, साउथ कोरिया, थाईलैंड, मलेशिया और भारत शामिल है। इसके साथ ही बांग्लादेश विभिन्न तरह के कर मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने वाले अंतरराष्ट्रीय व्यापार संधियों में शामिल है। उदाहरण- सार्क प्रिफरेंशियल ट्रेडिंग एग्रीमेंट, बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनामिक कोऑपरेशन, साउथ एशियन फ्री ट्रेड एरिया के साथ-साथ मुस्लिम देशों के अंतरराष्ट्रीय संगठन (ओआईसी) ने भी बांग्लादेश को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में विशेष रियायतें दी हुई हैं।

वर्तमान में भारत जहां 1 बिलियन डॉलर के गारमेंट एक्सपोर्ट को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है, वहीं बांग्लादेश का गारमेंट एक्सपोर्ट 32 बिलियन डॉलर से अधिक का हो चुका है। यह तथ्य स्पष्ट है कि भारत के टेक्सटाइल डिमांड में और निर्यात में एक अभूतपूर्व गिरावट आई है । भारत के टेक्सटाइल की होने वाली मांग समय के साथ बांग्लादेश में विस्थापित होती गई। जब भारत के टेक्सटाइल निर्यात में नेगेटिव वृद्धि दर देख रहा है, ठीक उसी दौरान बांग्लादेश ने टेक्सटाइल निर्यात को दोगुना कर लिया है। वर्ष 2019 में बांग्लादेश की निर्यात वृद्धि दर 10.1 फ़ीसदी रही जबकि वहीं भारत की निर्यात वृद्धि दर -1.6 फ़ीसदी रही थी।

भारत में टेक्सटाइल सेक्टर में काम करने वाले मजदूरों का औसत वेतन ₹10,000 होता है तो वहीं बांग्लादेश में औसत वेतन ₹5,000-₹6,000 पड़ता है। लेकिन सिर्फ सस्ते श्रम की वजह से नहीं बल्कि बांग्लादेश का टेक्सटाइल उद्योग स्थापित करने का मॉडल एक बेहतरीन उदाहरण है। बांग्लादेश ने टेक्सटाइल कंपनियां उन जगहों पर स्थापित की है जहां सस्ता श्रम उपलब्ध है। श्रम को कहीं दूर दूसरे जगहों पर काम करने के लिए नहीं जाना पड़ता है। इसकी वजह से बांग्लादेशी मजदूरों को अपनी ही जगह पर रोजगार प्राप्त हो जाता है और बचत भी बनी रहती है। वहीं भारत में बड़ी टेक्स्टाइ कंपनियां गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मौजूद है, जबकि सस्ता श्रम उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में उपलब्ध है। अगर भारत में भी टेक्सटाइल कंपनियां इन राज्यों में स्थापित हो जाए तो सस्ते श्रम के आधार पर वह भी बांग्लादेश की तरह सस्ता गारमेंट्स विदेशी बाजार में उपलब्ध करा सकता है। बिहार या उत्तर प्रदेश के जो मजदूर गुजरात और महाराष्ट्र जैसे बड़े-बड़े आर्थिक राज्यों में काम करने जाते हैं, वह अपनी कमाई का एक बेहद छोटा हिस्सा ही बचत के रूप में बचा पाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इन राज्यों में उन्हें अपने रहने से लेकर भोजन तक के प्रबंध के लिए अपनी आमदनी से ही खर्च करने होता है। लेकिन अगर यही कंपनियां और रोजगार उनके गृह राज्य के गृह जनपद में उपलब्ध हो जाए तो मजदूरों की दोनों ही खर्चों में एक बड़ी बचत देखी जाएगी। ऐसी परिस्थितियों में कुछ कम वेतन पर भी मजदूर काम करने के लिए तैयार रहेंगे। इस तरीके से एक मजदूर की बचत भी बढ़ेगी और कंपनियों को सस्ता माल भी उपलब्ध होने लगेगा।

बांग्लादेश भारत की तुलना में शिक्षा पर जीडीपी के मुकाबले कम खर्च करता है, लेकिन फिर भी आज वह अच्छी साक्षरता दर रखता है। बांग्लादेश की वर्तमान साक्षरता दर 72 फ़ीसदी है, जो वैश्विक मानकों के अनुरूप है। बांग्लादेश अपने मुल्क में प्राथमिक शिक्षा पर विशेष बल देता है। शिक्षा के लिए निर्धारित बजट का 50 फ़ीसदी से अधिक हिस्सा, वह अपनी प्राथमिक शिक्षा को मजबूत करने में खर्च करता है। आज बांग्लादेश में लड़कियों की शिक्षा दर लड़कों की तुलना में अधिक है।
बांग्लादेश की आर्थिक सफलता ने वहां सामाजिक सुरक्षा को भी काफी संबल प्रदान किया है। वर्ष 2008 से बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था 6 फ़ीसदी की औसत दर से बढ़ रही है। इस आर्थिक वृद्धि में मानव संसाधन के विकास का भी एक अच्छा पहलू है। ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019’ में बांग्लादेश 88वें पायदान पर था जबकि भारत 102वें स्थान पर था। बांग्लादेश ने पिछले कुछ वर्षों में बाल मृत्यु दर में गिरावट के साथ जीवन प्रत्याशा दर में सुधार के रूप में एक अहम उपलब्धि हासिल की है। बांग्लादेश में कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या कुल 33 फ़ीसदी जबकि यही आंकड़ा भारत के संदर्भ में 36 फ़ीसदी का बनता है। बांग्लादेश में 98 फ़ीसदी घरों तक शौचालय की व्यवस्था पहुंच चुकी है। भारत की तुलना में बांग्लादेश में महिलाओं की देश के कुल श्रम में अधिक भागीदारी है। स्वास्थ्य क्षेत्र में बांग्लादेश ने हर तीसरे गांव पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण किया है। महिलाओं के सुव्यवस्थित परिवार नियोजन के लिए सरकारी स्वास्थ्य कर्मियों के जरिए दवाएं और जरूरी वस्तुएं घर-घर उपलब्ध कराती है।

बांग्लादेश ने तेजी से टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपने कदम बढ़ा रहा है। हाल ही के वर्षों में उसने “साउथ कोरिया” को 12 रोबोट निर्यात किए। बांग्लादेश से चार समुद्री जहाज बनकर भारत आ चुके हैं। साथ ही साथ बांग्लादेश में अभी 6 लाख आईटी प्रोफेशनल की एक फ्रीलांस कम्युनिटी है। शायद यह दुनिया के बड़े फ्रीलांस कम्युनिटी में से एक होगी। इन सब के बीच बांग्लादेश तेजी से शहरीकरण की तरफ भी बढ़ रहा है। वर्ष 2020 तक बांग्लादेश की 48 फ़ीसदी आबादी शहरों और कस्बों में रहने लगेगी। एशिया पेसिफिक रीजन में बांग्लादेश के पास पांचवीं सबसे बड़ी इंटरनेट आबादी है। आज यह मुल्क 100 नए स्पेशल इकोनामिक जोन स्थापित कर रहा है।
विश्व आर्थिक मंच के लिए कैथरीन ने अपने एक लेख में लिखा है कि जब 1971 में बांग्लादेश आजाद हुआ था तो वह बेहद गरीब देश था और उसकी जीडीपी वृद्धि दर -14 फ़ीसदी थी। वहां एक राजनीतिक अस्थिरता थी और साथ ही साथ बाढ़ और भूख की समस्या ने बड़ी तबाही मचा रखी थी। लेकिन आज बांग्लादेश की वृद्धि दर 8 फ़ीसदी पहुंच चुकी है। बांग्लादेश की आबादी में आई गिरावट ने भी वहां प्रति व्यक्ति आय दर को बढ़ाने में मदद की है। आज बांग्लादेश मे आबादी की औसत सालाना वृद्धि 1.3 फ़ीसदी है तो वहीं सालाना आर्थिक वृद्धि दर 8.2 फ़ीसदी है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या में एक बड़ी गिरावट आ रही है। वर्ष 2010 में 73.5 फ़ीसदी श्रमिक गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते थे, वहीं 2018 में यह घटकर 10.4 फ़ीसदी हो चुका है। बांग्लादेश अपनी अर्थव्यवस्था को तेजी से अन्य क्षेत्रों के विकास को शामिल कर रहा है। सर्विस सेक्टर और माइक्रोफाइनेंस की कुल जीडीपी में 53 फ़ीसदी की संयुक्त हिस्सेदारी है। एशियन डेवलपमेंट बैंक के आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 के समय भी बांग्लादेश वर्ष 2020 में 4.5 फ़ीसदी की दर से आगे बढ़ेगा और वर्ष 2021 में 7.5 फ़ीसदी की दर से आगे बढ़ेगा। यह एशिया में किसी भी अन्य मुल्क से अधिक होगा।

आज बांग्लादेश विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के जरिए प्राप्त फंड के सही इस्तेमाल और उसके जरिए किए गए विकास के एक उदाहरण के रूप में पूरे विश्व के सामने मौजूद है। बांग्लादेश ने लक्ष्य निर्धारित किया है कि वह आने वाले 2021 तक अपने मुल्क को विकासशील मुल्क के रूप में और वर्ष 2041 तक वह एक विकसित राष्ट्र बनेगा।