देश में ई-कॉमर्स को नई ऊंचाई पर ले जाएगा फ्लिपकार्ट-वॉलमार्ट सौदा

अमेरिका की रीटेल कंपनी वॉलमार्ट ने हाल में फ्लिपकार्ट में बड़ी हिस्सेदारी खरीदने का एलान किया है. फ्लिपकार्ट का बाजार मूल्य $20.8 बिलियन लगाया गया है. इस हिसाब से वॉलमार्ट करीब 77% हिस्सेदारी के लिए $16 बिलियन चुकाएगी.

हाल में ही वॉलमार्ट के सीईओ कार्ल डगलस मैकमिलन और फ्लिपकार्ट के सीईओ और सहसंस्थापक बिन्नी बंसल के बीच इस सौदे को लेकर सहमति बनी थी. जरूरी मंजूरी मिलने के बाद यह विश्व का सबसे बड़ा रिटेल कामर्स सौदा होगा. वॉलमार्ट भारत के फैलते बाजार में अपना दबदबा क़ायम करने के लिए बड़ी रकम चुका रही है. वॉलमार्ट के अनुसार, इस सौदे को कानूनी रूप से पूरा करने में लगभग मार्च 2019 तक का समय लग सकता है.

मैकमिलन के अनुसार, इस बहुप्रतिक्षित समझौते के बाद फ्लिपकार्ट की आर्थिक, भौगोलिक और तकनीकी शक्ति कई गुना बढ़ जाएगी. वह देश में परिचालन कर रही अन्य कॉमर्स कंपनियों से काफी मजबूत स्थिति में जाएगी. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि फ्लिपकार्ट आगे भी अलग ब्रांड और ऑपरेटिंग संरचना में काम करती रहेगी. इस समझौते के बाद बिन्नी बंसल, टेनसेंट होल्डिंग, टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट और माइक्रसॉफ्ट कार्पोरेशन की हिस्सेदारी फ्लिपकार्ट में बनीं रहेगी. फ्लिपकार्ट ग्रुप के सहसंस्थापक सचिन बंसल अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचकर फ्लिपकार्ट से बाहर हो गये हैं.


इस सौदे के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीआईआई) की मंजूरी जरूरी है. अगर इस एतिहासिक समझौते को क़ानूनी मान्यता मिल जाती है तो इससे निश्चित तौर पर फ्लिपकार्ट को पैकिजिंग, लजिस्टिक्स, भंडारण एवं आपूर्ति व्यवस्था को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी. नीति आयोग ने भी इस समझौते का स्वागत किया है. इसे देश की प्रगति में मददगार बताया है.


दुनिया की दिगग्ज कॉमर्स कंपनी अमेजॉन के सीईओ जेफ बेजोस के अनुसार, “अगर हम भारतीय बाजार का पूरा फायदा नहीं उठा सकते तो हम दुनिया भर में कभी कारोबार नहीं फैला सकेंगे.” इस बयान से पता चलता है कि अमेरिकी कंपनियां भारतीय बाजार को किस तरह से देखती हैं. इस समझौते से पूर्व वॉलमार्ट ने जेट डॉट काम को 2016 में खरीदा था. इधर, फ्लिपकार्ट ने मिन्त्रा, जबोंग, फोनपे के माध्यम से भारत में कामर्स के क्षेत्र में लगभग 34% हिस्से पर अपना कब्जा स्थापित कर लिया है. हालांकि, वह घाटे में रही है.

विशेषज्ञों की मानें तो वॉलमार्टफ्लिपकार्ट समझौता भारत की आर्थिक विकास दर को मजबूती देगा. इस सौदे से रोज़गार के अवसर उत्पन्न होंगे. अर्थव्यवस्था में नगदी प्रवाह बढ़ेगा. प्रतिस्पर्धा बढ़ने से ग्राहक को गुणवत्तायुक्त उत्पाद उचित दर पर उपलब्ध होंगे. यह समझौता अन्य भारतीय कंपनियों के लिए भी विदेशी निवेश का रास्ता खोलेगा.


हालांकि, कुछ लोग इस डील का विरोध भी कर रहे हैं. कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने इस समझौते को भारतीय रिटेल बाज़ार के लिए ख़तरा बताया है. उनके अनुसार भारत में कोई स्पष्ट नियामक प्राधिकरण नहीं होने से असंतुलित प्रतिस्पर्धा जन्म लेगी, जिससे डाटा सिक्योरिटी और घरेलू उद्यमों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

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