मातृत्व स्वास्थ्य में कितनी सफल रही प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना?

एक मुल्क में विकास के कई पैमाने होते हैं। जिनमें प्रमुख रूप से आर्थिक और मानव विकास को परखा जाता है। मानव विकास की इस श्रेणी में मातृ स्वास्थ्य एक बेहद अहम पैमाना है। कोई मुल्क कितना स्वस्थ है, इस बात का निर्धारण वहां की गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य स्तर से भी किया जाता है। पिछले दो दशकों में दुनिया के देशों के सामूहिक प्रयास की वजह से गर्भावस्था और बच्चा पैदा करने के दौरान होने वाली मौतों में बड़ी गिरावट आई है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में कुल मौतें घटकर 2,95,000 पहुंच गई जो कि वर्ष 2000 में 4,51,000 हुआ करती थी। भारत में भी मातृ स्वास्थ्य के क्षेत्र में अच्छे सुधार देखने को मिले हैं। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2017 में मातृ मृत्यु अनुपात में कमी आई है। यह दर हर 1000000 की संख्या पर 130 मौतों से घटकर 122 पहुंच चुका है। वर्ष 2016 की तुलना में वर्ष 2018 में सालाना 2500 अतिरिक्त माताओं को बचाया गया। कुल अनुमानित मातृ मृत्यु दर में भी गिरावट आई है। जहाँ 2016 में कुल 33,800 मातृ मृत्यु दर्ज हुई थी तो वहीं 2018 में यह घटकर 26,437 पर पहुंच गय। भारत में तेजी से सुधरते मातृ मृत्यु अनुपात दर के पीछे कई योजनाओं के सफल क्रियान्वयन की बुनियाद है। इसमें से एक चर्चित योजना प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना है।

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना मोदी सरकार की एक प्रमुख योजना है। इस योजना को मातृत्व लाभ योजना भी कहा जाता है। इस योजना की शुरुआत 1 जनवरी 2017 को केंद्र सरकार द्वारा गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य लाभ के दृष्टिकोण से किया गया था। इस योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी महिला और बाल विकास मंत्रालय के पास है। इस योजना के अंतर्गत सरकार महिलाओं को आर्थिक मदद प्रदान करती है। गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के पैदा होने के बाद महिला को काम से आराम देने के उद्देश्य से एक महिला को ₹5000 दिए जाते हैं। यह राशि दो तरीकों से दी जाती है। पहली राशि जननी सुरक्षा योजना के तहत ₹1000 प्रदान की जाती है और दूसरी राशि प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के अंतर्गत तीन किस्तों में कुल ₹5000 रुपये की होती हैं। इसके लिए गर्भवती महिला और स्तनपान कराने वाली माता की न्यूतम आयु 19 वर्ष तय की गई है। पहली किस्त ₹1000 की गर्भावस्था के पंजीकरण के समय प्रदान की जाती है। दूसरी किस्त ₹2000 की 6 महीने की गर्भावस्था के बाद कम से कम एक प्रसवपूर्व जांच उपरांत दी जाती है।  तीसरी किस्त ₹2000 की बच्चे के जन्म पंजीकरण के बाद दी जाती है।

लेकिन इस योजना में कुछ प्रमुख कमियां भी मौजूद हैं। इस योजना का लाभ महिला को केवल पहले बच्चे के लिए ही मिलता है। लेकिन हम जानते हैं कि एक से अधिक बच्चों की समस्या सबसे अधिक आर्थिक रूप से कमजोर और अशिक्षित समाज के बीच ज्यादा है। इस योजना की दूसरी सबसे बड़ी समस्या महिला के पति का आधार संबंधित जानकारी का अनिवार्य होना है। इसकी वजह से सामाजिक विसंगतियों की शिकार अविवाहित महिलाएं, विधवा महिलाएं आदि वंचित रह जाती हैं। योजना की न्यूनतम आयु 19 वर्ष होने की वजह से 18 वर्ष से कम आयु की गर्भवती महिलाएं भी वंचित रह जाती है। आज भी देश के ग्रामीण इलाकों में अल्प आयु में बालिकाओं की शादी कर दी जाती है। ऐसी महिलाएं गर्भावस्था की स्थिति में इस योजना से वंचित रह जाती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 26.8 प्रतिशत विवाह 18 साल से कम उम्र में होते हैं।

साथ ही साथ इस योजना के मानकों के अनुसार यौनकर्मी, हिरासत में रहने वाली महिलाएं या प्रवासी लाभ नहीं ले सकती हैं। इस योजना के मानक किसी महिला के बुनियादी मातृत्व अधिकारों का भी उल्लंघन करते दिखते हैं। उदाहरण के लिए यह योजना केवल एक बच्चे तक ही सीमित है और इस योजना से जुड़े संबंधित दस्तावेज बताते हैं कि हमारी व्यवस्था यह स्वीकार करती है कि एक महिला को पहला बच्चा करने के दौरान ही तमाम समस्याओं से गुजरना पड़ता है। उसके बाद अन्य बच्चों की स्थिति में उसे किसी आर्थिक मदद की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस योजना का यह मानक मातृत्व से जुड़ी संवेदनाओं के खिलाफ दिखता है।

इस योजना को अधिक प्रभावी बनाने के लिए और मातृत्व स्वास्थ्य के पैमाने पर भारत को और बेहतर करने के लिए योजना के अंतर्गत बच्चों की अनिवार्य एक संख्या को समाप्त कर हर बच्चे पर लाभ दिए जाने की जरूरत है। साथ ही साथ परिवार नियोजन संबंधित कार्यक्रमों में और तेजी भी लाई जानी चाहिए। बिना किसी सामाजिक व आर्थिक विभाजन के सभी महिलाओं को इस योजना के अंतर्गत शामिल करते हुए एक सार्वभौमिक और समावेशी मातृत्व स्वास्थ्य योजना बनाने की जरूरत है।

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