भारतीय अर्थव्यवस्था: असमानता और गरीबी के दुश्चक्र में !

लेखिका- अदिति जायसवाल

भारतीय अर्थव्यवस्था को समझने के दो पहलू हैं। पहला यह है कि यह दुनिया की सबसे विशाल अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और दूसरा पहलू यह है कि यहां एक बड़ी आबादी संसाधनों के अभाव में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है। भारत में आज भी 8.4 करोड़ की आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है। सीआईए की विश्व तथ्य पुस्तक के अनुसार भारत का गिनी इंडेक्स (यह आय वितरण की असमानता को मापने का एक पैमाना है) वर्ष 2011 में 37.8 था। देश के सबसे अमीर 1% भारतीयों के पास कुल संपत्ति का 58.4% हिस्सा और सबसे अमीर 10% भारतीयों के पास कुल संपति का 80.7% हिस्सा है। यह आंकड़े भारत में व्याप्त आर्थिक असमानता को स्पष्ट दर्शाते हैं। ये तथ्य स्पष्ट इंगित करते हैं कि अर्थव्यवस्था के विकास में मौजूद गरीब तबका और गरीब होता जा रहा, लेकिन वहीं अमीर तबका और अमीर होता गया।

2019 में भारत ने एक विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में विश्व में पांचवा स्थान (नॉमिनल जीडीपी के अनुसार) और तीसरा स्थान (पर्चेजिंग पावर पैरिटी के अनुसार) हासिल किया था। वर्तमान में, भारत की जीडीपी $3,202 ट्रिलियन (नॉमिनल) और $11,321 ट्रिलियन (PPP) है। 2019 के आईएमएफ आंकड़ों के अनुसार, प्रति व्यक्ति आय दर के आधार पर, भारत की नॉमिनल जीडीपी को 118 वें स्थान पर और पर्चेजिंग पावर पैरिटी को 139 वें स्थान पर रखा गया था। किसी भी देश की “प्रति व्यक्ति आय दर” वहां के नागरिकों के जीवन स्तर को दर्शाती है। 2017 प्राइस वाटर हाउस कूपर्स (PwC) की रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक भारत की जीडीपी परचेसिंग पावर परिर्टी से अमेरिका से आगे निकल सकती है। भारत की विशाल जनसंख्या के कारण यहां प्रति व्यक्ति आय दर अन्य देशों से कम रहेगी भले ही भारतीय अर्थव्यवस्था जीडीपी बढ़त में अमेरिका से आगे ही क्यों न निकल जाए।

भारत की लगभग 70% आबादी ग्रामीण है, जिसकी आजीविका का प्राथमिक स्रोत कृषि है लेकिन भारत की जीडीपी में इसका योगदान महज 17 फ़ीसदी रह गया है। वहीं गौर करने वाली बात यह है कि भारत खाद्य और कृषि उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर आता है। 1991 में हुए आर्थिक बदलाव के बाद से सबसे अधिक नुकसान कृषि क्षेत्र को हुआ। जिस अनुपात में कृषि उत्पादों में बढ़ोतरी देखी गई, ठीक उसी अनुपात में कभी भी किसानों की आय में बढ़ोतरी नहीं देखी गई। यही कारण रहा है कि आर्थिक सुधारों के बाद से अभी तक तकरीबन 3.5 लाख किसानों ने आत्महत्या की है। भारतीय अर्थव्यवस्था में व्याप्त आर्थिक असमानता का सबसे बड़ा कारण हमारी कृषि के प्रति उदासीनता रही है।

आज भी भारत के एक बड़े हिस्से में बुनियादी ढांचे की खराब स्थिति मौजूद है। अधिकतर ग्रामीण सुरक्षा योजनाएं सही ढंग से काम नहीं कर रही हैं । पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण खपत में भी कमी आयी है, जो स्पष्ट संकेत दे रहा है कि गांवों में आय के सृजन में गिरावट आई है।

कोविड-19 संकट के दौरान आर्थिक संकट ने भी तेजी से पांव पसारे हैं। यह भी संभव है कि वक्त के साथ यह अभी और लंबा जाए। इस संकट के शुरुआती दौर में प्रारंभिक रोकथाम के लिए पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा की गई थी। इस लॉकडाउन से वायरस को तो खत्म नहीं किया जा सका लेकिन छोटे कामगारों मजदूरों एवं व्यापारियों की आजीविका को जरूर प्रभावित हो गई। इस झटके से अनुमानित 14 करोड़ लोगों ने रोजगार खो दिया था, जबकि कई अन्य लोगों के वेतन में कटौती की गई थी। देश को कोरोना वायरस के प्रसार से बचाने के लिए 2 महीने से अधिक लंबे राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के परिणाम स्वरूप 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था एक गहरे मंदी की तरफ जाती दिख रही है। इन सब के परिणाम स्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बार फिर अमीर और गरीब के बीच में व्याप्त लंबी खाई और गहरी हो जाएगी। आर्थिक असमानता के सबसे भयावह दुष्परिणामों को अभी देखा जाना बाकी है। शायद जारी कोविड-19 के संकट की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को निकट भविष्य में यह भी देखना पड़ जाए।

(लेखिका वाणिज्य संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय की छात्रा और फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल की सदस्य हैं)

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