क्या 1991 की आर्थिक नीति ने रखी है मौजूदा आर्थिक विकास की बुनियाद?

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने हाल ही में ‘नेशनल स्टॉक एक्सचेंज’ के रजत जयंती समारोह में 1991 के आर्थिक सुधारों को याद किया. उन्होंने जोर देकर कहा कि 1991 के आर्थिक सुधारों ने भारत को ग्लोबल लीडर के रूप में बदल दिया था. क्या यह सच है? या फिर मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को जवाब. कारण है है कि वर्तमान केंद्र सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक निर्णयों को आजादी के बाद के अन्य आर्थिक सुधारों की अपेक्षा ऐतिहासिक बता रही है. अब इन दोनों दावों में क्या सच्चाई है, इसके लिए दोनों आर्थिक बदलावों की पड़ताल करनी होगी.
1990 के आर्थिक सुधारों के समय भारत की आबादी 90 करोड़ थी. तब भारत बड़ी आर्थिक मंदी झेल रहा था. उस समय दो हफ्तों तक आयात करने की ही रकम भारतीय अर्थव्यवस्था के पास बची थी. विदेशी मुद्रा भंडार में कुल 110 करोड़ डॉलर बचे थे. उस कठिन परिस्थिति में बड़े बदलाव की जरूरत थी.
तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने उस वक्त वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह के साथ मिलकर आर्थिक सुधारों की नींव रखी थी. नेहरू के समय से सोशलिस्ट अर्थव्यवस्था के रूप में बढ़ रहे भारत के दरवाजे दुनिया के लिए खोल दिए गए थे. वैश्विक अर्थव्यवस्था में उसे ओपन इकोनॉमी ( खुली अर्थव्यवस्था) के रूप में सामने लाया गया.
नई आर्थिक नीति का आना अर्थव्यवस्था में बड़ा परिवर्तन माना जाता है. 1991 की नई आर्थिक नीति के बाद आर्थिक विकास की रफ्तार में तेजी आर्इ. सबसे खास बात यह थी कि इस रफ्तार के बढ़ने के साथ गरीबी में कमी आर्इ.
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 1991 की नई आर्थिक नीति के बाद गरीबी में 1.36 फीसदी की दर से कमी हुई. यह 1991 से पहले 0.44 फीसदी की दर से घट रही थी. नई आर्थिक नीति के बाद से तकरीबन 13.80 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर लाया जा चुका है. पर, यह भी माना जाता है कि नई आर्थिक नीति के बाद से आय के मामले में समाज में बड़ी असमानता आर्इ.

सकल घरेलू उत्पाद( जीडीपी) के नतीजों से भी 1991 की आर्थिक नीति की विवेचना की जा सकती है. इसके आधार पर इसकी सफलता और असफलता को तय किया जा सकता है.

1991 में कुल जीडीपी 5,86,212 करोड़ रुपये की थी. आज भारत की जीडीपी लगभग 20,00,000 करोड़ रुपये की हो चुकी है. 1991 से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश न के बराबर था. 1991 के आर्थिक सुधार के पहले वर्ष में केवल 7.40 करोड़ डॉलर का कुल निवेश हुआ था. 2016-17 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आजादी के बाद से सारे आंकड़ों को पीछे छोड़ते हुए 60.08 अरब डॉलर पहुंच गया.

अब अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के आर्थिक फैसलों की विवेचना करें तो हमें प्रमुख रूप से चार आर्थिक पहलुओं पर चर्चा करनी होगी. इनमें नोटबंदी, वस्तु एवं सेवा कर, इनसॉल्वेंसी व बैंक्रप्सी कोड (आईबीसी) और नया मौद्रिक नीति ढांचा शामिल हैं. सफलता और असफलता के पैमाने पर इन्हीं पहलुओं को कसना होगा.

8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का एलान किया था. इसके तहत सर्कुलेशन में 86 फीसदी करेंसी को अर्थव्यवस्था से बाहर कर दिया गया था. नोटबंदी के कुछ समय बाद आए नतीजों से साफ हो गया कि यह फैसला अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से लाभदायक नहीं था.

न केवल आर्थिक विकास पर इसका असर हुआ, बल्कि रोजगार में बड़ी कमी देखी गई. सरकार ने मुख्य रूप से काले धन पर अंकुश लगाने के मकसद से नोटबंदी का फैसला किया था. इसके जरिए देश को डिजिटल अर्थव्यवस्था में तब्दील करने का इरादा था.

अगर नोटबंदी के फैसले का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि यह अपने मुख्य उद्देश्य से भटकर चुनावी भावनाओं तक ही सीमित रह गया. ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 99 फीसदी करेंसी वापस बैंकिंग सिस्टम में आ चुकी है.

इससे यह तो स्पष्ट होता है कि नोटबंदी जिस काले धन को बाहर करने के लिए की गई थी वह उद्देश्य प्राप्त नहीं हुआ. नोटबंदी के बाद की चार तिमाहियों में जीडीपी वृद्धि दर में कमी देखी गई थी. 7 फीसदी से अधिक की दर से बढ़ रही अर्थव्यवस्था 2017 की दूसरी तिमाही में 5.7 फीसदी की दर पर पहुंच गई. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अध्ययन के अनुसार, नोटबंदी के बाद देश में 15 लाख नौकरियां एक साथ चली गई थीं.

जहां तक वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी का सवाल है तो इसे मोदी सरकार की सफलता के रूप में देखा जा सकता है. जुलाई 2017 में मोदी सरकार ने जीएसटी को लागू कर अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था में बड़े बदलाव की नींव रखी थी. जीएसटी के आ जाने के बाद से अप्रत्यक्ष कर संग्रह पर शुरुआती प्रभाव जरूर पड़ा है, लेकिन आने वाले दिनों में जीएसटी अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी साबित होगी.

आईबीसी को मई 2016 में केंद्र सरकार ने लागू किया था. इसके बाद से अर्थव्यवस्था में बैंकों के बढ़ते एनपीए और कर्ज में डूबी कंपनियों के लिए नए समाधान की व्यवस्था की गई. आईबीसी अच्छी नीति है जो भविष्य में बैंकिंग क्षेत्र को उबारने में मददगार साबित होगी.

वर्तमान मौद्रिक नीति का ढांचा केंद्र सरकार की आर्थिक सफलता है. इसमें आरबीआई और सरकार की संबद्धता की नई शर्तें तय की गईं. मौद्रिक नीति समिति सरकार की ओर से नियुक्त तीन स्वतंत्र सदस्यों के जरिए चलती है. इसमें आरबीआई के भी सदस्य होते हैं. मौद्रिक नीति समिति ने देश में महंगाई को नियंत्रण में रखने में सफलता हासिल की है.

1991 की आर्थिक नीति और मोदी सरकार के समय आर्थिक नीति में बदलावों के विश्लेषण के बाद एक बात साफ हो जाती है. वह यह है कि 1991 की आर्थिक नीति देश के वर्तमान आर्थिक विकास की बुनियाद थी. उसने देश में बदलाव की नींव रखी थी. वर्तमान में मोदी सरकार के जरिए लिए गए आर्थिक निर्णय भी भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था को सही दिशा में ले जाएंगे.

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