क्या है वर्तमान में वैश्विक राजनीति का परिदृश्य?

चीन लगातार भारत के ऊपर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है और दूसरी तरफ नेपाल भी चीन के इशारों पर भारत के खिलाफ बयानबाजी करता दिख रहा है। वर्तमान में भारतीय परिदृश्य से वैश्विक राजनीति पर राहुल मिश्रा का लेख।

कोविड-19 संकट के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन चर्चा का विषय बन हुआ है। इसके दो कारण हैं। पहला कि यह वैश्विक स्तर पर इस गंभीर महामारी से निपटने के लिए सबसे बड़ी संस्था है और दूसरा इसके नाम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच वर्चस्व की लड़ाई है। डब्ल्यूएचओ वक्त के हिसाब से देशों को इस महामारी से बचने के लिए जरूरी सलाह दे रहा, लेकिन एक तरफ इसके कुछ कार्यों पर विवाद भी खड़े हो रहे हैं। विवाद इतना बड़ा हो चुका है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ संगठन को दी जाने वाली राशि पर रोक लगा दी है। ट्रंप का मानना है कि डब्ल्यूएचओ ने चीन को बचाने के लिए इस बीमारी को दुनिया से काफी समय तक छुपा कर रखा, जिसके चलते यह संकट वैश्विक संकट के रूप में बदल गया।

डब्ल्यूएचओ की शुरुआत वर्ष 1948 में हुई थी और इसे 2 तरीके से फंड मिलता है। पहला, इसका सदस्य देश बनाने के लिए राष्ट्रों को एक रकम चुकानी पड़ती है। यह रकम डब्ल्यूएचओ के कुल खर्च एवं बजट का 20 फ़ीसदी ही होता है। इसका निर्धारण सदस्य देशों की आबादी और उसके विकास दर को आधार मानकर किया जाता है। दूसरा तरीका चंदे के रूप में विभिन्न देशों से मिली राशि होती है। इसका बजट हर दो साल पर निर्धारित किया जाता है। वर्ष 2020-2021 का कुल बजट 4.8 अरब डालर का है।
सयुंक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अंटोनिओ गुटेरेश और बिल गेट्स ने ऐसी स्थिति में डब्ल्यूएचओ को अमेरिका के जरिए दिए जाने वाले फंड के रोके जाने पर आपत्ति दर्ज कराई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन को मिलने वाले फंड में एक बड़ा हिस्सा वॉलंटरी कंट्रीब्यूशन का होता है। इसमें अकेले अमेरिका का कुल 14.5% हिस्सा होता है। इसके बाद ब्रिटेन,जर्मनी और जापान आते हैं। जानकारों का मानना है कि आने वाला समय चीन की अहमियत को बढ़ाने वाला है क्योंकि अब वह अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में अन्य देशों की तुलना में अधिक फंड दे रहा है।

पूरा विश्व अभी कोविड-19 की वैश्विक महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा लेकिन भारत चीन, नेपाल और पाकिस्तान के रूप में अपनी सीमा पर नए तरीके की लड़ाई भी लड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को अस्थिर करने की लगातार कोशिशें इन देशों के जरिए की जा रही हैं।

वर्तमान में नॉर्थ सिक्किम और लद्दाख में घुसपैठ की कोशिशों को लगातार बल दे रहा है। भारतीय सेना इन कोशिशों को ना काम करने के लिए मुंहतोड़ जवाब भी दे रही है। 5 मई को ‘पांगोंग झील’ के उत्तरी तट पर चीन और भारत के बीच स्थितियां तनावपूर्ण हो चुकी हैं। 9 मई को नातू ला पास के नजदीक भारत और चीन के सैनिकों में झड़प भी हुई थी। दूसरी तरफ लद्दाक में हुई झड़प के बाद चीन के हेलीकाप्टर भी वास्तविक सीमा रेखा के पास मंडराते दिख रहे हैं ।भारत ने भी जवाबी कार्रवाई के रूप में अपने लड़ाकू विमानों को तैनात कर दिया है।

लेकिन प्रश्न है कि आखिर चीन भारत को क्यों उकसाना चाहता है ?

क्रोना वायरस के चलते चीन पूरी दुनिया में एक बड़ी बदनामी को देख रहा है। एक राष्ट्र के रूप में उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न भी उठ रहे हैं। दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियां चीन से बाहर अपना कारोबार शिफ्ट कर रही है। हांगकांग और ताइवान चीन के प्रभुत्व को मानने से इंकार कर रहे हैं। इन सबके बीच दुनिया से अपनी बदनामी को छुपाने के लिए इस तरीके के प्रयोजन का इस्तेमाल कर रहा है। यह भी हो सकता है कि यह भारत को लगातार दबाव में रखने की रणनीति के तहत किया जा रहा हो। क्योंकि हाल ही में भारतीय मौसम विभाग ने अपनी मौसम रिपोर्ट में पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित बालटिस्तान और मुजफ्फराबाद आदि कश्मीर के क्षेत्रों को शामी किया था। इससे चीन को अपने प्रभाव के कम होने का खतरा महसूस हो रहा था।

क्या है वास्तविक सीमा रेखा और इसे जुड़ा विवाद?

भारत व चीन के बीच करीब 3498 किलोमीटर की सीमा रेखा है जिसे कि भारत-चीन ने 1962 के युद्ध के बाद सीमा निर्धारण होने तक मान रखा है। दरअसल भारत और चीन के मध्य कोई सीमा थी ही नहीं भारत की सीमा तिब्बत से लगती थी जिसे कि 1950 में चीन ने अपने कब्जे में कर लिया इसके बाद भारत और चीन के बीच 1954 में पंचशील का समझौता हुआ। उस समझौते के अनुसार भारत और चीन ने तय किया कि वह एक दूसरे की संप्रभुता, अखंडता और एकता का सम्मान करेंगे, एक दूसरे के प्रति आक्रमक नहीं होंगे, एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देंगे, एक दूसरे से सम्मान परस्पर लाभकारी संबंध रखेंगे। लेकिन 1962 में चीन ने भारत को धोखा दिया था और भारत पर हमला कर दिया था। भारत के जम्मू कश्मीर का क्षेत्र ‘अक्साई’ को चीन ने युद्ध के बाद अपने कब्जे में कर लिया था। चीन भारत के अरुणाचल प्रदेश व सिक्किम के कुछ भूभाग पर भी अपना दावा जताता रहा है।

डोकलाम विवाद

भारत और चीन के बीच वर्ष 2017 में डोकलाम का विवाद काफी तनावपूर्ण रहा था। उस दौरान भारत व चीन 73 दिन तक एक दूसरे के सामने डटे रहे थे। डोकलाम में भारत भूटान के हितों की खातिर चीन के सामने डटा था क्योंकि भूटान की अपनी कोई फौज नहीं है और भूटान की सुरक्षा जरूरतों को भारत ही पूरा करता है।

भारत-चीन के बीच सीमा विवाद में कई सकारात्मक पहलू

1975 के बाद से भारत-चीन ने अपनी सीमा पर आज तक एक भी गोली नहीं चलाई है। अगर कभी तनाव बढ़ता भी है तो दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे को बिना किसी हथियार का उपयोग किए जोर जबरदस्ती से ही रोकते हैं। यहां तक कि दोनों देशों की अग्रिम पंक्ति के सैनिक अपने पास कोई हथियार भी नहीं रखते हैं, अगर कभी फौज के वरिष्ठ अधिकारी सीमा की पहरेदारी की निगरानी करने भी चाहते हैं तो उनके अपने पिस्टल रिवाल्वर की नली भी जमीन की ओर रखी जाती है।

मार्च 1963 में पाकिस्तान ने ‘पाकिस्तान ऑक्यूपाइड कश्मीर’ के गिलगित बाल्टिस्तान वाले हिस्से में से एक इलाका चीन को गिफ्ट कर दिया था। यह करीब 1900 वर्ग मील से कुछ ज्यादा था। चीन इस क्षेत्र में कॉरिडोर बना चुका है जिससे वह ग्वादर पोर्ट से जोड़ रहा है। इसे चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर भी कहा जाता है ।

भारत-चीन के बीच सालाना लगभग 100 अरब डालर का कारोबारी संबंध है। चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है लेकिन उसके साथ भारत का 29 अरब डालर का विशाल व्यापार घाटा भी है । यानी कि चीन बड़े स्तर पर लाभ की स्थिति में है ।

वर्तमान परिस्थितियों में भारत को चीन से अपने आयात में भारी कटौती करनी होगी और चोर बाजारी से आ रहे चीनी सामानों को भी बंद करना होगा ताकि उसकी आर्थिक रूप से कमजोर किया जा सके। कोविड-19 की महामारी के बीच चीन छोड़ दी कंपनियों को भारत को आमंत्रित करना चाहिए और एक नई मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में उभरकर विश्व में आना चाहिए।

वर्तमान में चीन और पाकिस्तान के बाद नेपाल भी हमे आँखे दिखा रहा है। हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये 90 किलोमीटर लम्बी सड़क का उद्घाटन किया था। यह सड़क उत्तरखंड राज्य के घातियाभागड़ को हिमालय क्षेत्र में लिपुलेख दर्रे से जोड़ती है। अब नेपाल इसको लेकर भड़का हुआ है। नेपाल में भारतीय दूतावास के सामने नेपाली लोगो ने जमकर विरोध किया। जबकि सही मामले में इस राजमार्ग से पश्चिमी नेपाल के लोगों को रोजो-रोटी के लिए भारत आने में फायदा ही होगा। भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक और भौगोलिक तौर पर इतने घने संबंध है कि सीमा रेखा पर आम लोग आते-जाते दिख जाते हैं। लेकिन अब यह देखा जा रहा है कि नेपाल में भारत विरोधी स आवाजें उठ रही हैं। नेपाल सरकार कालापानी और लिपुलेख पर प्रश्न पूछ रही है। नेपाली सरकार के अनुसार इस क्षेत्र पर उनका आधिपत्य है | नेपाली सरकार बार बार उनके और अंग्रेजो के बिच हुई 1816 की सुगौली संधि का हवाला दे रही है तो भारत का दवा 1875 का नक्शा है, जिसमे इन दोनों क्षेत्रो को भारत में दर्शाया गया है | नेपाल में तराई का क्षेत्र मधेसिओ का है जिनके भारत के साथ अच्छे समबन्ध है वही दूसरी तरफ पर्वतीय क्षेत्र में मंगोल नस्ल के लोग हैं जो चीन से नजदीकी रखते है। भारत को चीन के साथ-साथ नेपाल की हरकतों पर भी नजर बनाकर रखनी होगी।

(लेखक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र हैं।)

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