वर्तमान दुनिया की तकनीकी नींव माने जाने वाले ‘रेयर अर्थ मैटेरियल’ को लेकर चीन ने हाल ही में एक ऐसा कदम उठाया है, जिसने वैश्विक आपूर्ति शृंखला को पूरी तरह से झकझोर दिया है। वस्तुत: चीन पर निर्भर देशों को अब सात प्रमुख रेयर अर्थ खनिजों के आयात के लिए विशेष लाइसेंस लेना अनिवार्य होगा। सर्वविदित है कि चीन का इन वस्तुओं पर एकाधिकार है। लिहाजा इन दुर्लभ धातुओं की आपूर्ति पर प्रतिबंध का निर्णय केवल आर्थिक चिंता नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए यह एक गंभीर प्रश्न बन गया है।
तकनीक पर निर्भर या आधारित आज की दुनिया ‘रेयर अर्थ मैटेरियल’ यानी दुर्लभ धातुओं के बिना अधूरी है। रेयर अर्थ धातुएं जैसे डिस्प्रोसियम, टर्बियम, नीओडिमियम, लैंथेनम और सेरियम का इस्तेमाल आज इलेक्ट्रानिक उपकरणों, स्मार्टफोन, पवन टरबाइन, इलेक्ट्रिक गाड़ियों और मिसाइल टेक्नोलाजी तक में इस्तेमाल होती हैं। ऐसे में चीन द्वारा इनके व्यापार के लिए लाइसेंस प्राप्त करने के कदम ने न केवल पूरी दुनिया को चौंका दिया है, बल्कि इस धारणा को भी तोड़ दिया है कि वह वैश्विक व्यवस्था से अलग-थलग होता जा रहा है। एक झटके में, चीन ने इन धातुओं की आपूर्ति को हथियार बनाकर पूरी दुनिया को उनकी सप्लाई पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया। आज यह एक वैश्विक चर्चा का विषय बन गया है कि आखिर रेयर अर्थ मैटेरियल के लिए चीन पर इतनी अधिक निर्भरता क्यों है।

‘रेयर अर्थ मैटेरियल’ पर चीन के सप्लाई चेन नियंत्रण को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि इन धातुओं पर उसका वर्चस्व कैसे बना। असल में ये दुर्लभ धातुएं केवल चीन में ही नहीं पाई जातीं, लेकिन इनकी माइनिंग और प्रोसेसिंग एक कठिन और खर्चीला काम है। चीन ने लंबे समय से इस क्षेत्र में निवेश, नवाचार और पूंजी के दम पर ऐसी बढ़त बना ली है कि चाहकर भी दुनिया अगले एक दशक तक बिना चीन के कुछ नहीं कर सकती। चीन दुनिया की कुल रेयर अर्थ मैटेरियल माइनिंग में लगभग 70 प्रतिशत और रिफाइनिंग तथा प्रोसेसिंग में 85 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। दुनिया का कोई देश इस स्थिति के करीब भी नहीं है। उदाहरण के तौर पर, वर्ष 2024 में चीन ने दो लाख 70 हजार टन रेयर अर्थ मैटेरियल का उत्पादन किया, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग दो-तिहाई हिस्सा था।
असल में चीन के इस एकाधिकार के पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला यह कि चीन ने वर्ष 1986 से 2020 के बीच दुनियाभर की रेयर अर्थ खदानों में रणनीतिक निवेश किया है। दक्षिण अफ्रीका और म्यांमार जैसे क्षेत्रों की कई खदानों पर उसका सीधा नियंत्रण है। दूसरा कारण यह है कि चीन ने कभी भी रेयर अर्थ मैटेरियल की प्रोसेसिंग और रिफाइनिंग तकनीक को दुनिया के साथ साझा नहीं किया। चीन भविष्य की आवश्यकताओं को भली-भांति समझता था और उसने प्रोसेसिंग और रिफाइनिंग के लिए अन्य देशों को अपने ऊपर निर्भर बनाए रखा। यहां तक कि अमेरिका भी हाल तक अपनी सबसे बड़ी रेयर अर्थ खदान ‘माउंटेन पास’ से निकाले गए खनिजों की प्रोसेसिंग के लिए चीन पर निर्भर था।
भारत में रेयर अर्थ मैटेरियल : भारत दुर्लभ खनिजों के मामले में एक समृद्ध देश है। हमारे पास लगभग 69 करोड़ मीट्रिक टन रेयर अर्थ खनिजों का भंडार है, जो हमारे देश को दुनिया के शीर्ष पांच देशों में शामिल करता है। देश में रेयर अर्थ तत्वों के प्रमुख स्रोत विशेष रूप से मोनाजाइट के रूप में मिलते हैं। मोनाजाइट एक प्रकार की खनिज रेत है, जिसमें थोरियम सहित कई दुर्लभ तत्व मौजूद होते हैं। अनुमान है कि विश्व के कुल तटीय बालू खनिज भंडार का लगभग 35 प्रतिशत भारत के पास है। यह खनिज मुख्य रूप से भारत के समुद्री तटों पर पाया जाता है, जैसे आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि इतने बड़े भंडार होने के बावजूद भारत का रेयर अर्थ उत्पादन काफी सीमित है। वर्ष 2024 में भारत ने केवल 2,900 मीट्रिक टन का उत्पादन किया। इसके अलावा, एक बड़ी चुनौती देश के आटोमोबाइल और इलेक्ट्रानिक्स उद्योगों की स्थायी चुंबकों की जरूरत से जुड़ी है। भारत में फिलहाल रेयर अर्थ से स्थायी चुंबक बनाने का कोई भी कारखाना मौजूद नहीं है। इसी कारण आटोमोबाइल और इलेक्ट्रानिक्स क्षेत्र की लगभग सभी आवश्यकताएं आयात के माध्यम से पूरी की जा रही हैं। कुल मिलाकर, भारत के पास विशाल भंडार तो हैं, लेकिन प्रसंस्करण और उत्पादन क्षमता के अभाव में वैश्विक आपूर्ति शृंखला में उसकी भूमिका अब भी सीमित बनी हुई है।

भारत की तैयारी : भारत ने इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए हाल के वर्षों में कई नीतिगत पहलें की हैं। सबसे पहले, वर्ष 2023 में महत्वपूर्ण खनिजों की पहली राष्ट्रीय सूची जारी की गई, जिसमें भारत ने 30 खनिजों को “क्रिटिकल मिनरल” घोषित किया। इसके बाद, सरकार ने खनन और खनिज नीति में व्यापक बदलाव करते हुए वर्ष 2023 में खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम में संशोधन किया। इस संशोधन के अंतर्गत अब निजी क्षेत्र को भी रेयर अर्थ तत्वों की खोज और खनन में भागीदारी की अनुमति दी गई है। दशकों तक यह क्षेत्र एटमिक एनर्जी एक्ट के अंतर्गत केवल सरकारी नियंत्रण में था। सरकार ने अब उच्च मूल्य वाले उत्पादों की मूल्य शृंखला विकसित करने के उद्देश्य से वित्तीय प्रोत्साहन योजनाएं भी तैयार की हैं। उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआइ) के तहत अब दुर्लभ खनिजों पर आधारित घटकों और स्थायी चुंबकों के देश में निर्माण को प्रोत्साहित करने का प्रस्ताव है। सरकार लगभग पांच हजार करोड़ रुपये के बजट के साथ इस नई योजना की रूपरेखा पर कार्य कर रही है, जिसका उद्देश्य रेयर अर्थ धातुओं और उनसे बनने वाले मैग्नेट का स्वदेशी उत्पादन बढ़ाना है। इसके अतिरिक्त, अप्रैल 2025 में सरकार ने एक व्यापक पहल के रूप में ‘राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन’ को भी स्वीकृति प्रदान की है। इस मिशन के लिए 16,300 करोड़ रुपये का बजटीय प्रविधान किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य देश में महत्वपूर्ण खनिजों की संपूर्ण मूल्य शृंखला का विकास करना है, जिसमें खोज, खनन, प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण जैसे सभी चरण शामिल हैं।
इसके अलावा, भारत रेयर अर्थ तत्वों की आपूर्ति में चीन पर निर्भरता कम करने के लिए ठोस रणनीति अपना रहा है। सबसे पहले, सरकार ने घरेलू संसाधनों को देश में ही उपयोग करने की नीति पर जोर दिया है। इसी के तहत सरकारी उपक्रम आइआरईएल को जापान को किए जा रहे निर्यात को रोकने का निर्देश दिया गया, ताकि संसाधन देश के भीतर ही प्रसंस्करण और उपयोग के लिए उपलब्ध रहें। इसके साथ ही भारत दुर्लभ स्थायी चुंबकों का आपात भंडार तैयार कर रहा है और घरेलू उत्पादन को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए ‘मेड-इन-इंडिया’ मैग्नेट पर लागत सहायता योजना पर काम कर रहा है। भारत की एक महत्वपूर्ण तैयारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गठजोड़ और समन्वय को मजबूत करने की दिशा में भी है। वर्ष 2023 में भारत, अमेरिका की अगुवाई में गठित मिनरल्स सिक्योरिटी पार्टनरशिप (एमएसपी) का 14वां सदस्य बना। इस साझेदारी का उद्देश्य महत्वपूर्ण खनिजों की एक सुरक्षित, विश्वसनीय और विविध आपूर्ति शृंखला विकसित करना है, जिसमें आस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान जैसे देश आपसी सहयोग से कार्य कर रहे हैं। भारत इस पहल में शामिल होने वाला पहला विकासशील देश है।
क्वाड बन सकता है एक बड़ा वैकल्पिक स्रोत
चतुर्भुज सुरक्षा संवाद यानी क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलाग (क्वाड) मंच आज दुनिया का ऐसा फोरम है जो रेयर अर्थ मैटेरियल के क्षेत्र में चीन को वास्तविक चुनौती देने की क्षमता रखता है। हाल के वर्षों में भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के बीच खनिज सहयोग लगातार बढ़ा है। ऐसे में यह मंच एक नई और सुरक्षित आपूर्ति शृंखला स्थापित कर सकता है। वर्तमान में आस्ट्रेलिया, अमेरिका और भारत के पास रेयर अर्थ सहित अन्य महत्वपूर्ण खनिजों के विशाल भंडार मौजूद हैं, वहीं जापान के पास उन्नत तकनीक और निवेश की मजबूत क्षमता है। यदि अमेरिका, भारत और आस्ट्रेलिया मिलकर खनिजों की आपूर्ति सुनिश्चित करें और जापान वित्तीय तथा तकनीकी सहयोग प्रदान करे, तो वैश्विक आपूर्ति तंत्र की दिशा बदल सकती है। इस दिशा में भारत की भूमिका निर्णायक है, बशर्ते वह उत्पादन, रिफाइनिंग और प्रोसेसिंग के लिए एक सक्षम केंद्र के रूप में विकसित हो। भारत न केवल कच्चे माल के स्रोत के रूप में महत्त्वपूर्ण है, बल्कि सस्ता और कुशल उत्पादन भी उसकी सबसे बड़ी ताकत है। इस सहयोग से न केवल क्वाड देश, बल्कि पूरा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र चीन पर अपनी निर्भरता को धीरे-धीरे कम कर सकता है।

वर्तमान घटनाक्रम ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य की वैश्विक राजनीति केवल तेल और गैस के इर्द-गिर्द नहीं घूमेगी, बल्कि दुर्लभ धातुओं की आपूर्ति और नियंत्रण भी प्रभावशाली मुद्दे होंगे। आज चीन की रेयर अर्थ मैटेरियल पर दशकों से बनी मोनोपाली को तोड़ना आसान नहीं है, लेकिन यह असंभव भी नहीं है। इसके लिए वैश्विक स्तर पर समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। सबसे पहले, उन देशों को जिनके पास रेयर अर्थ खनिजों का भंडार है, जैसे आस्ट्रेलिया, अमेरिका, भारत, ब्राजील और वियतनाम, उन्हें अपने खनन और प्रसंस्करण ढांचे को मजबूत करना होगा। इसके लिए सार्वजनिक और निजी निवेश, तकनीकी सहयोग और नीति समर्थन की जरूरत होगी। दूसरा, प्रसंस्करण संयंत्रों को केवल चीन तक सीमित रखने के बजाय अन्य देशों में भी विकसित करना होगा, ताकि वैश्विक आपूर्ति शृंखला में विविधता लाई जा सके। तीसरा, पुरानी इलेक्ट्रानिक वस्तुओं और मशीनों से रेयर अर्थ तत्वों का पुनर्चक्रण बढ़ाना एक सस्ता एवं पर्यावरण-सम्मत विकल्प हो सकता है, जिस पर जापान और यूरोप पहले ही काम कर रहे हैं। इसके अलावा, तकनीकी शोध और नवाचार के जरिये वैकल्पिक सामग्रियों या नई तकनीकों को विकसित करना भी जरूरी है, ताकि लंबे समय में इन तत्वों पर निर्भरता कम हो सके। अंतरराष्ट्रीय मंचों जैसे मिनरल्स सिक्योरिटी पार्टनरशिप और क्वाड के माध्यम से साझा निवेश, ज्ञान-विनिमय और रणनीतिक भंडारण की योजनाएं बनाकर सहयोगी देश चीन से दबाव कम कर सकते हैं। यदि ये कदम योजनाबद्ध ढंग से उठाए जाएं, तो दुनिया एक स्थिर, पारदर्शी और चीन के वर्चस्व से मुक्त आपूर्ति व्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ सकती है। (विक्रांत निर्मला सिंह)