



मोदी सरकार की विदेश नीति पर एक बार पुनः संदेह के घेरे में है। एक तरफ पड़ोसी मुल्कों के साथ बिगड़ते तालमेल ने नई दिल्ली को परेशान कर रखा है तो वहीं दूसरी तरफ ईरान के साथ लगातार कमजोर होते रिश्तो ने भारत की विदेश नीति को पुनः सोचने पर मजबूर किया है। वर्तमान में चर्चा का केंद्र चाबहार से जाहेदान जाने वाली 628 कि०मी० रेलवे लाइन प्रोजेक्ट बनी हुई है। शुरुआती खबरों के अनुसार ईरान सरकार ने इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट के निर्माण में विलंब की बात कहकर भारत को बाहर रखने की बात कही थी। खैर खबर यह भी है कि ईरान की ओर से बयान जारी कर कहा गया है कि भारत चाबहार-जहेदान रेल प्रोजेक्ट का हिस्सा अभी भी बना हुआ है। जो भी है लेकिन वर्तमान में भारत के रिश्ते ईरान के साथ पूर्व की भांति मजबूत नहीं रह गए हैं। इसका एक कारण अमेरिका और ईरान के बीच चल रही तनातनी और भारत का अमेरिका के नजदीक होना माना जा सकता है। जिस विलंब की शुरुआती खबरें आई थी वह सही भी थी, क्योंकि अमेरिकी प्रतिबंध की वजह से भारत को अफगानिस्तान से जोड़ने वाली चाबहार-जहेदान रेलवे लाइन परियोजना में विलंब हो रहा था।
वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली ईरान यात्रा के दौरान चाबहार-जहेदान रेल प्रोजेक्ट का समझौता किया था। भारत सरकार ने इस पूरी योजना पर करीब 1.6 अरब डॉलर कि निवेश की बात रखी थी। समझौते के अनुसार इस रेलवे लाइन को भविष्य में बढ़ाकर अफगानिस्तान के जरांज सीमा तक पहुंचाना था। भारत की तरफ से इरकान कंपनी को इस रेलवे प्रोजेक्ट की व्यवहारिक रिपोर्ट बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी। इरकॉन के इंजीनियरों ने रिपोर्ट तो तैयार कर दी थी लेकिन काम शुरू नहीं हो पाया था।

चाबहार बंदरगाह योजना भारतीय दृष्टिकोण से हमेशा एक महत्वपूर्ण सामरिक भूमिका में मौजूद रही है। यह योजना भारत और ईरान के संबंधों के एक प्रतिबिंब के रूप में देखी जाती है। रणनीतिक रूप से यह बंदरगाह, भारत को मध्य एशिया और रूस से जुड़ने में मदद करता है। समझौते के अनुसार अभी भारत के पास इस बंदरगाह के दो टर्मिनल को विकसित और इस्तेमाल करने की अनुमति है। वर्ष 2016 में जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी “चाबहार ट्रेड एंड ट्रांसपोर्ट” एग्रीमेंट के समझौते को अंतिम रूप दे रहे थे तो उन्होंने कहा था कि ‘यह योजना ईरान और भारत के लिए विकास के इंजन के रूप में काम करेगी’।
लेकिन बीते सालों में भारत के ईरान के साथ संबंध कमजोर पड़ते गए। इस साल की ही शुरुआत में ईरान ने भारत की प्रतिष्ठित ओएनजीसी विदेश कंपनी को फरजाद बी गैस फील्ड प्रोजेक्ट से बाहर कर दिया। फरवरी में हुए दिल्ली दंगों के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला ख़मेनेई ने मुस्लिम राग अलापते हुए भारत को भारतीय मुसलमानों की हिफाजत की बात कह दी थी और कहा था कि भारत में मुस्लिमों की रक्षा ही भारत को विश्व के मुस्लिम समुदाय से अलग होने से बचा सकती है।

भारत अभी तक ईरान के चाबहार बंदरगाह पर अरबों रुपये खर्च कर चुका है। हालांकि, अमेरिका की वजह से भारत और ईरान के संबंध नाजुक बने हुए हैं। अमेरिका के दबाव की वजह से भारत पहले ही ईरान के साथ कच्चे तेल की आपूर्ति में कटौती कर चुका है। लेकिन भारत से दूर होते ईरान ने मोदी सरकार के लिए कूटनीतिक स्तर पर एक बड़ा प्रश्न है। क्या अमेरिका और ईरान के बीच चल रही तनातनी में भारत अमेरिका के दबाव में अपना नुकसान कर रहा है?

उधर चीन भारत के सभी सहयोगियों के बीच अपनी पैठ मजबूत करता जा रहा है। हाल ही में चीन ने इरान के साथ 25 साल के एक कूटनीतिक साझेदारी के संबंध में समझौता किया है, जिसके अंतर्गत चीन भविष्य में 400 बिलियन डॉलर की बड़ी राशि ईरान में इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी और ढेरों ऊर्जा प्रोजेक्ट तैयार करने में लगाएगा। यदि भारत प्रस्तावित रेलवे लाइन प्रोजेक्ट से बाहर हो जाता है तो यह चीन के लिए एक बड़ी बढ़त के रूप में देखा जाएगा।
चाबहार बंदरगाह पूरे दक्षिण एशिया के दरवाजे खोलता है। वेद प्रकाश वैदिक लिखते हैं कि प्रस्तावित रेलवे लाइन प्रोजेक्ट भारत के लिए मध्य एशिया और रूस में बुलंद दरवाजे खोलने जैसा है। प्रधानमंत्री मोदी ने शुरुआती दिनों में ईरान के साथ समझौता कर नए अवसरों को खोला जरूर था लेकिन इसकी नींव तो अटल बिहारी बाजपेई ने रखी थी। अटल जी ने अपने कार्यकाल में जरंज-दिलाराम सड़क बनवाई थी, जिसने समुंद्र से कटे अफगानिस्तान को इरान के जरिए भारत से जोड़ा था। यह कदम एक बड़ी कूटनीतिक जीत थी। अगर अफगानिस्तान को समुंद्र तक आने-जाने का रास्ता इरान के जरिए मिल जाए तो उसकी निर्भरता पाकिस्तान पर खत्म होगी और भारत के दृष्टि से यह सकारात्मक परिणाम होगा, क्योंकि अफगानिस्तान हमेशा से कराची बंदरगाह पर निर्भर रहा है।

इसलिए प्रस्तावित रेलवे लाइन प्रोजेक्ट अफगानिस्तान की राजनीतिक और आर्थिक आजादी की एक नए संखनाद के रूप में है। इस पूरे प्रोजेक्ट में भारत के होने से सबसे ज्यादा कष्ट चीन और पाकिस्तान को ही हो रहा था क्योंकि चाबहार बंदरगाह से 72 मील दूर पाकिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह को चीन बना रहा है। पहले से ही भारत चाबहार बंदरगाह का इस्तेमाल अपने व्यापार के लिए कर ही रहा है, इस रेलवे लाइन प्रोजेक्ट से भारत कहीं अधिक मजबूत हो जाएगा। इसलिए हर हाल में इसको पूरा करना भारत की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
भारत को अमेरिका और ईरान के बीच संतुलन का मार्ग तैयार करना होगा। इरान का दूर जाना भारत के लिए कभी भी अच्छे संकेत नहीं हो सकते हैं। अफगानिस्तान और मध्य एशिया में पहुंचने के लिए हमें ईरान की कहीं अधिक जरूरत है, क्योंकि चीन और पाकिस्तान से हमारे संबंध हमेशा से खराब रहे हैं। वैसे भी ईरान धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी भारत से जुड़ा हुआ है। भारत के शिया समुदाय के बीच ईरान के शिया समुदाय के लिए लगाव देखा जा सकता है। इरान हमेशा से भारत के लिए ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के सबसे सरल, नजदीक और किफायती देश के रूप में भी मौजूद रहा है।