रेपो रेट में हुई कटौती, बढ़ाएगी अर्थव्यवस्था में रफ्तार!

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नए गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली दूसरी मौद्रिक नीति की बैठक में भारतीय रिजर्व बैंक ने नीतिगत ब्याज दर (रेपो रेट) को 0.25 फीसद घटाकर 6 फीसद कर दिया है। इससे आने वाले समय में मकान, वाहन व अन्य निजी वस्तुओं की खरीद पर गहरा प्रभाव पड़ेगा और उद्योग-धंधों के लिए कर्ज सस्ते हो सकते हैं। पिछले काफी लंबे समय से उद्योग जगत और सरकार आरबीआई के जरिए ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद लगा कर बैठा हुआ था। नई गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार को नए वित्त वर्ष की पहली मासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर को 0.25 फीसद घटाकर 6 फीसद कर दिया है, जिसका स्वागत उद्योग जगत के साथ साथ आम लोगों ने भी किया है। रेपो दर में हुई दूसरी कटौती से आर्थिक वृद्धि को एक नई गति मिल सकती है। नीतिगत ब्याज दर में हुई कटौती से अर्थव्यवस्था में नकदी की स्थिति सुधरेगी और निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। जिसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में वृद्धि देखी जा सकेगी। लेकिन वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था की अनियमितताओं को देखते हुए रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने वृद्धि दर को कम करते हुए 7.2% की उम्मीद जताई है. रेपो रेट कटौती में आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति के 6 में से 4 सदस्यों ने समर्थन किया था.

भारतीय केन्द्रीय बैंक यानी रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा आर्थिक नीतियों की समीक्षा के दौरान प्रमुख ब्याज दरें – रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट – घटाने, बढ़ाने या स्थिर रखने का कार्य किया जाता है जिसे मौद्रिक नीति कहते है । इस कार्य को करने वाली समिति को ही मौद्रिक नीति समिति कहते हैं। विभिन्न दरों को उपर निचे करने का कार्य यही मौद्रिक नीति समिति करती है । एमपीसी (मौद्रिक नीति समिति ) का गठन 2016 में हुआ था । इसके लिए वित्त विधेयक के जरिए आरबीआई एक्ट में संसोधन किया गया था । यह समिति आर्थिक विकास को देखते हुए नीतिगत दरें तय करती है । इसमें महंगाई की दर का खास ध्यान रखा जाता है ।

मौद्रिक नीति समिति में आरबीआई के गवर्नर सहित 6 विशेषज्ञ होते हैं । इसमें तीन सदस्य केंद्र सरकार और तीन आरबीआई के होते है. समिति की अध्यक्षता गवर्नर करते हैं । समिति के हर सदस्य की सदस्यता चार वर्षों के लिए होती है. इस समिति के लिए वर्ष में कम से कम चार बैठकें करना जरूरी है । ऐसा नहीं कि सिर्फ भारतीय केन्द्रीय बैंक (आरबीआई) ही मौद्रिक नीति समिति के जरिये अर्थव्यवस्था में बैंकिंग सिस्टम को गवर्न करता है । दुनिया में ऐसे तमाम देश है जो किसी विशेष समिति के जरिये मौद्रिक नीति का निर्माण करते है । उदाहरण के लिये संयुक्त राज्य अमेरीका में मौद्रिक नीति ‘फेडरल ओपन मार्केट कमीटी’ के जरिये किया जाता है । वहीं जापान और ब्रिटेन के केंद्रीय बैंक भी मौद्रिक नीति समिति के जरिए ही मौद्रिक नीति का निर्माण करते है ।

मौद्रिक नीति समिति की घोषणा में रेपो रेट पर विशेष नजर रखी जाती है। बैंकिंग व्यवस्था और इसके भागीदारों के लिये यह शब्द और इसकी दर महत्वपूर्ण मानी जाती है । रेपो रेट के बढ़ने या घटने से अर्थव्यवस्था और बैंकिंग सेक्टर में एक बड़ा परिवर्तन देखा जाता है।

बैंकों को अपने रोजमर्रा के क्रियाकलापों के लिए बड़ी-बड़ी रकमों की ज़रूरत पड़ जाती है, और ऐसी स्थिति में उनके लिए देश के केंद्रीय बैंक, यानि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से ऋण लेना ही सबसे आसान विकल्प होता है । इस तरह के कर्ज़ को ओवरनाइट ऋण कहा जाता है और इसी कर्ज़ पर रिजर्व बैंक जिस दर से ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहा जाता है । रेपो दर का इस्तेमाल आरबीआई अर्थव्यवस्था में मँहगाई दर में स्थिरता बनाने के लिये करती है । जब भी कभी अर्थव्यवस्था में मँहगाई दर बढती है तो आरबीआई रेपो दर को बढ़ा बैंकिंग सिस्टम में नकदी कम कर देती है । मँहगाई काबू या घटने की स्थिति में आरबीआई रेपो दर में कटौती करती है जिसके कारण बैंक सस्ते कर्ज़ उपलब्ध कराते है ।

अब आसानी से समझा जा सकता हैं कि जब बैंकों को कम दर पर ऋण उपलब्ध होगा तो वे भी ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपनी ब्याज दरों में कटौती करते हैं ताकि ऋण लेने वाले ग्राहकों में ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ोतरी की जा सके और ज़्यादा रकम ऋण पर दी जा सके । इसी तरह यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट में बढ़ोतरी करेगा, तो बैंकों के लिए ऋण लेना महंगा हो जाता है और वे भी अपने ग्राहकों से वसूल की जाने वाली ब्याज दरों में बढोत्तरी कर देते है । वर्तमान समीक्षा बैठक की रिपोर्ट के अनुसार अब यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में होम लोन विशेषकर महंगे होंगे और अन्य तरह के कर्ज की दरों में भी वृद्धि देखी जाएगी।

हालांकि यह बैंकों के उपर होता है कि वह आरबीआई व्दारा बढ़ाएं गये दरों का उपभोक्ताओं के ऊपर किस तरह से लागू करती है । पुर्व गवर्नर रघुराम जी राजन ने अपनी किताब ‘आई डू व्हाट आई डू ‘ में लिखा है कि ये बैंक के उपर निर्भर करता है कि वो कर्ज़ देने की दर क्या रखी जाए ? समान्यतः बैंक लेंडिंग रेट (उपभोक्‍ताओं को कर्ज देने की दर) और रेपो रेट के बीच एक मार्जिन रखते है जो कि उनका लाभ होता है । मार्जिन की दर ही कर्ज़ को सस्ता और मँहगा बनाती है ।

लेखक – विक्रान्त सिंह
संस्थापक एवं अध्यक्ष
फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउन्सिल
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय।

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