आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि है। उनके कई रूप रहे हैं। कोई उन्हें कवि के रूप में याद करता है, कोई ओजस्वी वक्त के रूप में। लेकिन अटल अटल बिहारी वाजपेई की एक पहचान उनके कार्यकाल की आर्थिक नीतियां रही हैं। संकट से गुजर रहे भारत के लिए 1991 की नई आर्थिक नीति ने कई दरवाजे खोले थे। विदेशी निवेश हो रहा था और भारत दुनिया का एक बड़ा बाजार बनने लगा था। लेकिन 1995 में ऐसा दौर आया जहाँ राजनितिक अस्थिरिता ने आर्थिक चिंतायें बढ़ा दी थी। हर साल सरकारें गिर रही थी और नयी सरकार बन रही थी। इस पर सन 1999 में ब्रेक लगा और बीजेपी ने कई पार्टियों के समर्थन से सरकार बनाई। इस सरकार के प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी। अर्थव्यवस्था को लेकर अभी संदेह बरक़रार थे क्योंकि संघ पृष्ठभूमि के एक नेता से खुले बाजार की वकालत मुश्किल थी। जब 1991 में संघ की एक इकाई स्वदेशी जागरण मंच ने खुली अर्थववस्था का विरोध किया था। बरहाल वाजपेयी सरकार ने भविष्य में सभी आकलनों को गलत साबित किया। बड़े स्तर पर सरकारी कंपनियों का विनिवेश किया गया। विनिवेश और निजीकरण के लिए तो बकायदा अलग से मंत्रालय बना था जिसकी जिम्मेदारी अरुण शौरी के पास थी। वित्तीय घाटे को सिमित रखने जैसे बड़े सुधार किये गए। बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर सरकारी खर्च बढ़ाया गया।

बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स बने थें आर्थिक केंद्र बिंदु
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के प्रमुख आर्थिक उपलब्धियों में सबसे अधिक चर्चा “स्वर्णिम चतुर्भुज योजना” की होती है। इसके अंतर्गत दिल्ली-कोलकाता, चेन्नई–मुंबई, कोलकाता–चेन्नई, मुंबई–दिल्ली जोड़ते कुल 5846 किलोमीटर लंबे हाईवे का निर्माण हुआ था। वर्तमान समय की भारतमाला एवं सागरमाला प्रोजेक्ट्स इसी की बुनियाद पर हैं। सन् 2000 में ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ की शुरुआत हुई थी। इसने ग्रामीण इलाकों में सड़कों का एक जाल बिछाया था। आज भी यह योजना गाँवो को शहरों से जोड़ने के लिए चलायी जा रही है। वाजपेयी सरकार ने बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के जरिये अर्थव्यवस्था में खूब पैसा डाला था। इसका फायदा ग्रोथ में भी दिखा। 2003 में जीडीपी ग्रोथ 8% पहुँच गयी थी।
जीएसटी की पहली कोशिश वाजपेयी सरकार में
आज जीएसटी के जिस स्वरुप को हम देखते हैं, इसकी पहली बहस सन 2000 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार में शुरू हुई थी। उस समय देश के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा थे। केंद्र सरकार ने जीएसटी के लिए राज्य के वित्त मंत्रियों की एक समिति बनाई थी। समिति की 2003 में आयी रिपोर्ट ने राज्यों को एक कर व्यवस्था अपनाने का सुझाव दिया था।
वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए बनाया था कानून
सरकारें जब कमाई से ज्यादा खर्च करती हैं तो उसे वित्तीय घाटा कहते हैं। देश में वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए पहले कोई कानून नहीं था। वाजपेयी सरकार ने ‘फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट 2003’ के जरिए वित्तीय घाटे को कानूनी नियंत्रण दिया था। इसके जरिए तय किया गया था कि अर्थव्यवस्था में वित्तीय घाटा जीडीपी के अनुपात में 0 से 3% के बीच होना चाहिए।

इन उपलब्धियों के बीच वाजपेयी सरकार की आलोचना भी है। नई पेंशन स्कीम को लागु करने के कारण सरकारी कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग आज नाराज रहता है। एक बार फिर जब देश में ओल्ड पेंशन स्कीम बहाली की मांग तेज हो रही है, तब वाजपेयी सरकार का लोग जिक्र करना नहीं भूलते। लेकिन वाजपेयी सरकार कई आर्थिक सुधारों के लिए इतिहास में दर्ज रहेगी। जेम्स फ्रीमैन कहते थे कि कि राजनेता अगले चुनाव के बारे में सोचते हैं और राष्ट्र नेता अगली पीढ़ी के बारे में। देश के कई आर्थिक विश्लेषक यह मानते हैं कि डॉ मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में तेज आर्थिक वृद्धि का एक कारण वाजपेयी सरकार में हुई बड़ी पूंजी निवेश और आर्थिक सुधार थे।
(लेखक फाइनेंस एंड इकनोमिक थिंक कॉउन्सिल के संस्थापक अध्यक्ष हैं। यहाँ व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)