भारत आज भी कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है. देश की लगभग 49 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है. आजादी के बाद से ही किसानों की समस्याएं बनी हुर्इ हैं. इनका हल नहीं निकाला जा सका है. सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. इसे पूरा करने के लिए सरकार कम लागत में अधिक पैदावार पर जोर दे रही है.
इस दिशा में आगे बढ़ते हुए सरकार ने 2 मई 2018 को हुर्इ कैबिनेट बैठक में ‘हरित क्रांति–कृषोन्नति योजना‘ को जारी रखने की मंजूरी दी है. यह एक अंब्रैला स्कीम है. इसका मतलब यह है कि इस योजना के तहत कर्इ स्कीम चलार्इ जाती हैं.
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में यह बैठक हुर्इ थी. इसमें योजना को 2019-20 तक जारी रखने की स्वीकृति दी गर्इ है. इस योजना पर कुल 33,269.976 करोड़ रुपये का खर्च होगा. कृषोन्नति योजना के अंतर्गत 11 महत्वाकांक्षी योजनाएं चलार्इ जाती हैं.
इन योजनाओं का उद्देश्य वैज्ञानिक तरीके से उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाकर उत्पाद पर बेहतर लाभ सुनिश्चित करके किसानों की आय बढ़ाना है. वैसे, तमाम कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद भी पिछले वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र की विकास दर मात्र 2.1 फीसदी रही है. यह उसके पिछले साल की दर 4.9 फीसदी से कम है. सीएसओ के आकड़ों से इसका पता चलता है. ये आकड़े अपने आप में विरोधाभासी और चिंता का कारण हैं. एक तरफ जहां सरकार किसानों की आय दोगुनी करने का वादा कर रही है तो वहीं इसी क्षेत्र की ग्रोथ घट रही है.
असल में किसान बडे़ पैमाने पर कीमतों में अस्थिरता को झेल रहें हैं. इससे उनकी आमदनी और पैदावार प्रभावित होती है. खासतौर पर आलू, टमाटर और प्याज जैसी सब्जियों की कीमतों के मामले में ऐसा अक्सर होता है. कीमतों में उतार–चढ़ाव का मामला कर्इ वर्षों से लगातार चल रहा है. आज भी कृषि उत्पादों को लेकर कोर्इ ठोस मूल्य निर्धारण व्यवस्था नहीं है. कृषि अर्थव्यवस्था पर बारीकी से अध्ययन करने वाले डॉ भरत झुनझुनवाला ( वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं आर्इआर्इएम बेंगलुरु के पूर्व प्रोफेसर) ने एक लेख में लिखा है कि बीते 70 वर्ष से देश के खाद्यान्न उत्पादन में भारी बढ़ोतरी तो हुर्इ, लेकिन आज भी किसानों की आय निचले स्तर पर बनी हुर्इ है.
उन्होंने वित्त मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों का हवाला देते हुए लिखा है कि वर्ष 2015-16 में केंद्र एवं राज्य सरकारों ने किसानों के हित में कुल 563 हजार करोड़ रुपये खर्च किए थे. अगर इस बड़ी रकम का 25 फीसदी हिस्सा निवेश मान लिया जाए तो किसानों के नाम पर दी जाने वाली सब्सिडी 422 हजार करोड़ रुपये बैठती है.
अब इस अनुमान के हिसाब से 2018-19 में केंद्र और राज्य सरकारें लगभग 520 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना पर काम कर सकती हैं. अगर इस रकम को लगभग 10 करोड़ किसानों पर खर्च किया जाए तो प्रति किसान 52,000 हजार रुपये हर साल बैठता है.
अगर ये पूरी रकम किसानों तक पहुंच जाए तो उनकी जिंदगी बदल सकती है. योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन न होना और जारी बजट का किसानों तक न पहुंचना हमेशा ही एक बड़ी समस्या रही है.
किसानों की एक बड़ी मुश्किल कृषि उत्पादों का बाजार तक न पहुंच पाना भी है. इसके लिए जरूरी है कि किसानों को उनके उत्पादों का सही मूल्य और बेचने के लिए उपयुक्त बाजार मिले.
हालांकि, लागत से डेढ़ गुना अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा और उसका क्रियान्वयन किसानों की माली हालत को कुछ हद तक ठीक करेगा. सरकार को वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार कृषि क्षेत्र में विदेशी निवेश, नई प्रौद्योगिकी, कृषि निर्यात बढ़ाने पर भी तेजी से काम करने की जरूरत है.