क्या हैं भारतीय अर्थव्यवस्था के रास्ते में बड़ी बाधाएं?

विश्व बैंक ने हाल ही में कुछ आंकड़े जारी किए हैं. इनके अनुसार, भारत 2017 में अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और ब्रिटेन के बाद दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. भारत ने फ्रांस को पीछे छोड़ते हुए यह उपलब्धि हासिल की है. फ्रांस सातवें स्थान पर खिसक गया है.

भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) पिछले साल के आखिर में 2.597 ट्रिलियन डॉलर थी. जबकि फ्रांस की 2.582 ट्रिलियन डॉलर. भारत के ऊपर ब्रिटेन पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. इसके जीडीपी का आकार 2.62 ट्रिलियन डॉलर है.

‘ब्रेक्जिट’ के चलते संभव है कि भारत निकट भविष्य में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाए. वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले अर्थशास्त्रियों ने भविष्यवाणी भी की है कि भारत 2028 तक जर्मनी और जापान के आगे निकल सकता है.

वैसे तो भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में तेजी से बढ़ रही है. पर, हमें इस विकास के साथ आय असमानता जैसे मुद्दे पर भी ध्यान देने की जरूरत है. आईएमएफ के ताजा आंकड़ों के अनुसार, प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत का स्थान विश्व में 126वां है.

प्रति व्यक्ति आय दर ही हमारी अर्थव्यवस्था के विकास और उसमें शामिल लोगों के विकास को परिभाषित करती है. फिलहाल अभी भारत की जनसंख्या 1.34 अरब है. 2024 तक उम्मीद है कि भारत आबादी में चीन को पीछे छोड़ देगा. इस स्थिति में हमें अपनी प्रति व्यक्ति आय दर पर सोचना होगा.

अर्थव्यवस्था का आकार बड़ा होना सकारात्मक संकेत होता है. पर इससे भी महत्वपूर्ण है, प्रति व्यक्ति आय दर में बढ़ोतरी. जब अर्थव्यवस्था में प्रति व्यक्ति आय दर बढ़ती है तो खपत की दर में भी वृद्धि होती है. अर्थव्यवस्था तब अप्रत्याशित रफ्तार से आगे बढ़ती है.

पिछले महीने विश्व बैंक की ओर से प्रकाशित ‘ग्लोबल इकोनॉमिक्स प्रॉस्पेक्ट्स’ रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2018 में 7.3 फीसदी और 2019-20 में 7.5 फीसदी की दर से बढ़ सकता है.

विकास दर के ये अनुमान भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मजबूत और आशाजनक हैं. यह रफ्तार निश्चित ही अर्थव्यवस्था के आकार को बड़ा करेगी. पर, इसके साथ ही हमें रोजगार के नए अवसरों, आर्थिक असमानता और सामाजिक विकास पर काम करना होगा.

इन रिपोर्टों में सरकार को उच्च विकास दर को बनाए रखने के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को सरल बनाने और सुव्यवस्थित करने की भी सलाह दी गर्इ है. इसके अलावा उसे बैंकिंग क्षेत्र के कॉरपोरेट कर्ज और फंसे कर्ज (एनपीए) से निपटने के लिए भी काम करना होगा. कारण है कि बढ़ता एनपीए निकट भविष्य में आर्थिक मंदी और बैंकिंग बंदी का कारण बन सकता है. इन मसलों के साथ हमें बेहतर विकास के लिए भूमि और श्रम सुधारों की प्रक्रिया पर भी प्रयास करने पड़ेंगे.
हालांकि, विश्व आर्थिक रिपोर्ट के दृष्टिकोण से भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक वित्तीय संकट में मजबूत दिखाई पड़ती है. वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय व्यापार संरक्षणवाद, वैश्विक वित्तीय बाजार में अस्थिरता और बढ़ते कॉरपोरेट कर्जों की समस्याओं से जूझ रहा है. दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में बढ़ रहा भारत भी इन ‘जोखिमों’ से अछूता नहीं है.

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