भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल दूसरी बार रेपो रेट में बढ़ोतरी की है. इसे चौथार्इ फीसदी बढ़ाया गया है. आरबीआर्इ के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने तीन दिवसीय बैठक के बाद बुधवार को मौद्रिक नीति का एलान किया. इसके पहले जून में भी केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में बढ़ोतरी की थी. तब भी इसे 0.25 फीसदी बढ़ाया गया था.अब रेपो दर 6. 25 फीसदी से बढ़कर 6.50 फीसदी हो गर्इ है. आरबीआई ने यह फैसला न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी, जीएसटी की दरों में कटौती, वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के कारण लिया है.
केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान नीतिगत ब्याज दरों को घटाने, बढ़ाने या इन्हें यथावत रखने का फैसला करता है. यह काम एमपीसी करती है. एमपीसी का गठन 2016 में हुआ था.इसके लिए वित्त विधेयक के जरिए आरबीआई एक्ट में संसोधन किया गया था . यह समिति आर्थिक विकास को देखते हुए नीतिगत दरें तय करती है. इसमें महंगार्इ की दर का खास ध्यान रखा जाता है.एमपीसी में आरबीआर्इ के गवर्नर सहित 6 विशेषज्ञ होते हैं. इसमें तीन सदस्य केंद्र सरकार और तीन आरबीआई के होते हैं. समिति की अध्यक्षता रिजर्व बैंक के गवर्नर करते हैं. समिति के हर सदस्य की सदस्यता चार वर्षों के लिए होती है. इस समिति के लिए वर्ष में कम से कम चार बैठकें करना जरूरी है.
मौद्रिक नीति समिति की घोषणा में रेपो रेट पर विशेष नजर रहती है. बैंकिंग व्यवस्था और इसके भागीदारों के लिए इसे काफी अहम माना जाता है. रेपो रेट के बढ़ने या घटने से अर्थव्यवस्था और बैंकिंग सेक्टर पर काफी असर पड़ता है.इसलिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि रेपो रेट क्या है? बैंकों को अपने रोजमर्रा की गतिविधियों के लिए भारी-भरकम रकम की जरूरत पड़ती है. ऐसी स्थिति में उनके लिए केंद्रीय बैंक से कर्ज लेना ही सबसे आसान विकल्प होता है. इस तरह के कर्ज को ओवरनाइट लोन कहा जाता है. इसी कर्ज पर जिस दर से रिजर्व बैंक ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहते हैं.अब आसानी से समझा जा सकता हैं कि जब बैंकों को कम दर पर कर्ज उपलब्ध होता है तो वे भी ग्राहकों को लुभाने के लिए अपनी ब्याज दरों में कटौती करते हैं. ग्राहकों की संख्या को बढ़ाने के मकसद से बैंक यह काम करते हैं. इससे बैंकों की ब्याज आय बढ़ती है.
इसी तरह अगर रिजर्व बैंक रेपो रेट में बढ़ोतरी करता है, तो बैंकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाता है. फिर वे भी अपने ग्राहकों से वसूल की जाने वाली ब्याज दरों को बढ़ा देते हैं. ताजा मौद्रिक समीक्षा को देखते हुए अब कहा जा सकता है कि आने वाले समय में लोन खासतौर से होम लोन महंगे होंगे. पर्सनल और कार लोन में भी बढ़ोतरी होगी.