क्यों बैंकिंग सिस्टम का मर्ज नहीं हो रहा है दूर?

पिछले 4 वर्षों में एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) चौगुनी रफ्तार से बढ़े हैं. लोकसभा में हाल में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री शिव प्रकाश शुक्ला ने यह जानकारी दी. सरकारी बैंकों का एनपीए मार्च 2018 तक बढ़कर 8,45,475 करोड़ रुपये हो गया है. 2014 में यह 2,16,739 करोड़ रुपये था.

वित्त राज्य मंत्री का कहना है कि मौजूदा दौर में एनपीए में बढ़ोतरी निष्पक्ष रूप से बैंकिंग ट्रांजेक्शन और विवादित संपत्तियों की पहचान की वजह से आई है. उनके अनुसार, एसेट्स क्वालिटी रिव्यू सिस्टम के कारण बैंकिंग सिस्टम में एनपीए का सही आंकड़ा सामने आया है. 2015 में बैंकों में मौजूद लोन खातों पर संपत्तियों की निष्पक्ष पहचान के लिए इसे लाया गया था

उन्होंने एनपीए की समस्या को पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की देन बताया. मंत्री ने इसके लिए आरबीआर्इ के आंकड़ों हवाला दिया. इसके अनुसार, शेड्यूल कॉमर्शियल बैंकों ने 2008 से लेकर 2014 के बीच अधिक कर्ज दिया था.

केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री ने बताया की 31 मार्च, 2008 को कर्ज में दी गर्इ कुल रकम 25 लाख करोड़ रुपये थी. 2014 में यह आंकड़ा बढ़कर 69 लाख करोड़ रुपये हो गया. सरकार के हिसाब से यही कर्ज एनपीए के रूप में मौजूद है.

इससे साफ हो जाता है कि बैंकिंग सेक्टर की सेहत अब भी चिंताजनक है. आर्थिक विकास में बैंकिंग सेक्टर का पिछड़ना अच्छा नहीं है. बैंकों की नाजुक हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वित्त वर्ष 2017-18 में सरकारी बैंकों ने कुल 85,370 करोड़ रुपये का नुकसान दर्ज किया. सार्वजनिक क्षेत्र के इन बैंकों में सिर्फ दो ऐसे बैंक रहे जिन्होंने लाभ अर्जित किया है. विजया बैंक ने 727 करोड़ रुपये और इंडियन बैंक ने 1,259 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया है.

बैंकिंग सेक्टर की बिगड़ी सेहत को देखते हुए ही आरबीआर्इ ने 11 बैंकों को प्रॉम्प्ट एक्शन करेक्टिव फ्रेमवर्क के अंतर्गत रखा है. स्थिति बिगड़ने पर छह और सरकारी बैंकों को फ्रेमवर्क में रखा जा सकता है. इस हिसाब से कुल 17 सरकारी बैंकों को फ्रेमवर्क के दायरे में लाया जाएगा. फ्रेमवर्क में शामिल बैंकों को आरबीआर्इ नई शाखाएं खोलने और बड़े डिविडेंड बांटने पर रोक लगा देता है. केंद्रीय बैंक इन बैंकों की कर्ज देने की क्षमता पर अंकुश लगाते हुए इनको पटरी पर लाने का काम करता है.

पिछले वित्त वर्ष में सरकार ने बैंकों की स्थिति को सुधारने के लिए रीकैपिटलाइजेशन की घोषणा की थी. लेकिन, आंकड़ों से यही पता चलता है कि सरकार की ओर से उठाया गया यह कदम संतोषजनक नतीजे नहीं दे रहा है. बीते साल अक्टूबर में तत्कालीन वित्त मंत्री ने आने वाले 2 साल में बैंकों के रीकैपिटलाइजेशन के लिए दो लाख दस हजार करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी.

एनपीए को अगर और बारीकी से समझें तो पता चलता है कि 2014 के अंत में कुल एनपीए बैंकिंग सिस्टम का 4.3 फीसदी हिस्सा था. यह 31 मार्च 2018 को यह आंकड़ा 14.5 फीसदी हो गया है.

वहीं पिछले 5 वर्षों में बैंकिंग फ्रॉड की संख्या भी दोगनी रफ्तार से बढ़ी है. हाल ही में आरबीआई ने फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट जारी की है. इसके अनुसार, आने वाले मार्च में पब्लिक सेक्टर बैंकों का एनपीए बढ़कर 17.3 फीसदी तक जा सकता है.

आंकड़ों से साफ है कि बैंकिंग व्यवस्था बुरी स्थिति में जा रही है. लेकिन, सरकार अब भी इस स्थिति के लिए पिछली सरकार को जिम्मेदार बता रही है. यह सच है कि आज का एनपीए यूपीए सरकार के दौरान दिए गए कर्ज का भी नतीजा है. पर, अब जब 4 वर्ष बीत चुके हैं, बिगड़ती परिस्थितियों के लिए पिछली सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

Leave a Comment