भारत में बढ़ते बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामले चिंताजनक

रविजेन्द्र राय (छात्र – दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय)

“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवताः।” अर्थात जहां स्त्रियों का आदर होता है वहां देवता वास करते हैं। इस श्लोक से भारतीय संस्कृति तथा दर्शन में नारी की महत्वता का ज्ञान होता है। भारत में युगों-युगों से नारी सदैव पूजनीय रही है किंतु धीरे-धीरे मध्यकाल में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में गिरावट आई। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो भारत में स्त्रियों के प्रति अपराधों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। आए दिन स्त्रियों के प्रति अपराधों के नए रिकॉर्ड स्थापित हो रहे हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में वर्ष 2019 में हर रोज औसतन 88 महिलाओं का बलात्कार हुआ और देश भर में 32,033 मामले दर्ज किए गए इनमें से 11% मामले दलित समुदाय से थे। जबकि वर्ष 2018 में 33,356 बलात्कार हुए, यानी कि औसतन हर रोज 91 मामले दर्ज किए गए। यह आंकड़े बेहद भयानक और चौंकाने वाले हैं कि भारत में प्रति 16 मिनट में एक महिला का बलात्कार होता है। यह बात विभीषिका का विषय इसलिए भी है क्योंकि भारत में 17.9% मामले अपहरण के हैं और 21.8% मामले रेप के इरादे से हमला करने के हैं। कई मामलों में बलात्कार पीड़ितों की हत्या कर दी जाती है या उनकी मृत्यु हो जाती है। राज्यों के तर्ज पर यदि आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2019 में राजस्थान में सबसे अधिक 5,997 मामले, उत्तर प्रदेश में 3,065 मामले, मध्य प्रदेश में 2,485 मामले दर्ज हुए। इसके अलावा महानगरीय शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु में रेप की ज्यादा घटनाएं हुई। वर्ष 2019 में अकेले राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 1,253 बलात्कार दर्ज हुए।

यह आंकड़े और भयानक प्रतीत होते हैैं क्योंकि यह आंकड़े केवल आधिकारिक दर्ज मामलों के हैं। जबकि अधिकांश मामलों में पीड़िता अथवा उसका परिवार शिकायत दर्ज ही नहीं करवाता क्योंकि उन्हें न्याय न मिलने, समाज में बदनामी होने का डर लगता है या उनको दोषियों द्वारा धमकाया जाता है। कुछ मामलों में पुलिस और प्रशासन की नकारात्मक छवि भी प्रभावी दिखाई देती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार 91.1% यौन हिंसा के केसों में शिकायत दर्ज नहीं की जाती।

देश में महिला सुरक्षा बीते दो दशकों से काफी संवेदनशील मुद्दा रहा है और इस पर जमकर राजनीति भी की जाती है। 2014 के लोकसभा चुनाव तथा उसके पश्चात यूपी एवं अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में यह बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा था। हालांकि आंकड़ों तथा रिपोर्टों पर गौर फरमाएं तो यह स्पष्ट पता चलता है कि देशभर में महिलाओं और उनकी सुरक्षा एक चिंताजनक विषय है। महिलाएं बाहर तो बाहर अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं है। एनसीआरबी के अनुसार वर्ष 2000 में दर्ज बलात्कारों में से 14,420 बलात्कार महिला के ज्ञात लोगों द्वारा अथवा करीबियों द्वारा ही किया गया था, जिसमें से पिता या परिवार के सदस्यों द्वारा 363, रिश्तेदारों द्वारा 990, पड़ोसियों द्वारा 4,345 तथा अज्ञात लोगों द्वारा 8,722 रेप के मामले थे। इसके अतिरिक्त प्रेमी द्वारा शादी का झूठा वादा करके यौन शोषण करने के मामले भी बहुतायत हैं। अपने कार्यालयों में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं है। यह वह महिलाएं हैं जो शिक्षित तथा जागरूक हैं, फिर भी इनके साथ ही कर्मचारियों एवं उच्च पदाधिकारियों द्वारा इनका यौन शोषण होता है। इसके अलावा प्रशासनिक अधिकारियों, पुलिस कर्मचारियों, जेल कर्मियों तथा अस्पताल प्रशासन या कर्मियों द्वारा भी महिलाओं से बलात्कार किया जाता है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में दर्ज कुल मामलों में से 5 पुलिस, 13 प्रशासनिक अधिकारियों, जेल कर्मियों/प्रशासन द्वारा 24, अस्पताल कर्मचारियों द्वारा 4 और महिला के अधीनस्थ कार्य करने वाले कर्मचारियों द्वारा 182 बलात्कार के मामले दर्ज हुए।

महिलाओं के साथ हुए बलात्कार का एक बड़ा हिस्सा अवयस्क बालिकाओं के ऊपर होता है। वर्ष 2019 में 16 वर्ष से कम आयु की 790 बालिकाओं से बलात्कार किया गया। मानसिक रूप से कमजोर महिलाओं से 393 एवं दिव्यांग महिलाओं से 116 रेप के केस सामने आए। मासूम बालिकाओं पर ऐसे जघन्य अपराध भारतीय कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हैं। यह उन सभी प्रयासों को जो आधी आबादी के सशक्तिकरण के लिए हो रहे हैं, उन्हें कटघरे में खड़ा करती है।

देश में बलात्कार के मामले अचंभित और डरा देने वाले हैं। सरकार व प्रशासन के तमाम वादों और दावों को यह आंकड़े खोखला साबित करते हैं। भारत में अधिकांश बलात्कार पीड़ितों की हत्या कर दी जाती है या उनकी मृत्यु हो जाती है। पुलिस में शिकायत और कार्यवाही पर पीड़िता या उसके सम्बन्धियों की हत्या कर दी जाती है। कानून ही नहीं अपितु हमारे सभ्य समाज में भी नैतिकता की दृष्टि से इस प्रकार की घटनाएं निंदनीय, नृशंस, अवांछनीय, वीभत्स, अक्षम्य, शर्मनाक और दण्डयोग्य अपराध है।

देश में बलात्कार जैसी घटनाओं को कम करने के लिए सरकारों द्वारा कई प्रयास किए गए हैं। महिला हेल्पलाइन, पिंक बस सेवा, राजधानी दिल्ली में डीटीसी बसों में कुछ विशेष बसें चलाना जिनमें महिलाओं की सुरक्षा के लिए कमांडो तैनात होते हैं, मेट्रो तथा रेल में महिलाओं के लिए अलग कोच की व्यवस्था आदि अनेक कार्य बलात्कारों और छेड़छाड़ को नियंत्रित करने के लिए किए गए हैं। बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम (पास्को एक्ट) को संशोधन द्वारा और अधिक मजबूत किया गया है। इसके अलावा पीड़िता को त्वरित न्याय हेतु देशभर में 1,023 फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की गई है। हांलाकि अभी भी पीड़िताओं को त्वरित तथा उचित न्याय नहीं मिल पाया है। मार्च 2020 को स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, जिला और अधीनस्थ अदालतों में विचाराधीन मामले 2018 में 26.1 मिलियन से बढ़कर जनवरी 2020 में 31.7 मिलियन (22.8 मिलियन आपराधिक मामले व 8.9 मिलियन सिविल मामले शामिल) हो गई, जो 21% की वृद्धि है।

सरकारों द्वारा बलात्कार पीड़ितों के संरक्षण तथा उनको समाज की मुख्यधारा में वापस लाने के लिए मुआवजा, भरण-पोषण भत्ते तथा कई पुनर्वास योजनाएं चलाई जा रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा निर्भया फंड की सन 2012 में स्थापना की गई जो रेप पीड़ितों को स्वास्थ्य तथा सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से थी। इस फंड से ‘शुभ’, ‘वन स्टॉप सेंटर’ और ‘सखी’ जैसी योजनाएं संचालित होती हैं। क्षेत्र तथा सरकारी कार्यालयों में भी आंतरिक समितियां बनाई गई हैं, जिनका उद्देश्य कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण व लैंगिक अत्याचार रोकना तथा इससे संबंधित शिकायतों का निपटारा करना है। देश में बढ़ते बलात्कार के मामलों से स्पष्ट है कि सरकार के उपर्युक्त सभी कदम अपर्याप्त हैं। सरकार को बलात्कारों की रोकथाम के लिए कड़े कानून बनाने होंगे, पुलिस सुरक्षा दुरुस्त करनी होगी एवं व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाने होंगे। त्वरित न्याय हेतु फास्ट ट्रैक कोर्टों की और अधिक स्थापना करनी होगी तथा उनके क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान देना होगा तभी महिलाओं के विरुद्ध हिंसा तथा शोषण रोकने में सफल हो सकेंगे।

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