कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का फायदा क्यों नहीं ले पा रहा भारत ?

वर्तमान में पूरी दुनिया कोविड-19 की महामारी से बुरी तरह प्रभावित है. वैश्विक आर्थिक गतिविधियां बिल्कुल थम सी गई है. जारी वैश्विक आर्थिक गिरावट का सीधा प्रभाव अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में देखा जा रहा है. तो अब प्रश्न उठता है कि क्या भारत सहित दुनिया के तमाम देश कच्चे तेल की कीमतों में जारी गिरावट का फायदा उठा पाएंगे? जब भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट होती है तो इसका सीधा फायदा भारतीय अर्थव्यवस्था को पहुंचता है क्योंकि भारत की कुल खपत का लगभग 85 फीसदी तेल आयात किया जाता है. लेकिन वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में ऐतिहासिक गिरावट के बाद भी भारत को फायदा पहुंचता नहीं दिख रहा है.

कोविड-19 की वैश्विक महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है. महामारी के कारण आज आर्थिक गतिविधियों में जो गिरावट देखी जा रही है, उसकी वजह से घरेलू स्तर पर तेल की मांग पर बुरा असर पड़ा है. 1 महीने से चल रहे लॉकडाउन ने इसकी मांग को प्रभावित किया है. आज हवाईए अड्डे बंद हैं.सड़क और रेल परिवहन बंद है. फ़ैक्टरिया बंद है . बाजार बंद है.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की वैश्विक मांग में 30 फीसदी की गिरावट आई है. जनवरी के अंत तक जिस कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की कीमत 57 डॉलर प्रति बैरल हुआ करती था, अब वह घटकर मात्र 20 डॉलर प्रति बैरल रह गई है. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के निर्यातक देशों के समूह ने 10 फीसदी उत्पादन की कटौती का प्रस्ताव रखा गया था जो बहुत प्रभावी साबित होता नहीं दिख रहा है.

एक वक्त था जब भारत जैसी अर्थव्यवस्था है अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट को लेकर प्रसन्नता व्यक्त करती थी. लेकिन जारी संकट के बीच आज दुनिया भर की तमाम सरकारें बेहाल है. यही कारण है कि भारतीय अर्थव्यवस्था भी घटे तेलों के दामों का फायदा नहीं ले पा रही है. खैर एक तथ्य और है जो ध्यान में लाने की जरूरत है. कच्चे तेल में यह गिरावट अचानक से नहीं आई है बल्कि वर्ष 2017-18 से ही शुरू हो गई थी. लेकिन कोविड-19 के संकट ने कच्चे तेल की कीमतों में एक बड़ी चपत लगाई है. यह संभव है कि जारी वित्त वर्ष 2020-21 में आर्थिक मंदी की गति तेज होने पर, यह संकट लगातार बना रहे.

कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का सबसे बड़ा प्रभाव यह हो सकता है कि भारत का कच्चे तेल के आयात का बिल काफी कम रह सकता है, लेकिन चालू खाते में इसका कोई बहुत बड़ा लाभ होता नहीं दिखा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि दूसरी तरफ देश का पेट्रोलियम उत्पाद का निर्यात भी 8 फीसदी घट कर महज 43 अरब डालर रह गया है.

हमेशा से ही पेट्रोलियम उत्पाद राज्यों के लिए राजस्व का एक बड़ा स्रोत रहे हैं. पेट्रोलियम उत्पादों पर लगाए गए शुल्क की राज्यों के राजस्व में कुल 16 फ़ीसदी की हिस्सेदारी होती है. कीमतों में कमी के कारण अभी यह बिल्कुल संभव है कि इससे केंद्र और राज्यों के वित्त पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. भारत के लिए चिंताजनक तो यह भी है कि पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का उत्पादन पहले के वित्त वर्ष की तुलना में क्रमशः 6 और 5 प्रतिशत की कमी आई है.

‘पैट्रोलियम प्लांनिंग एंड एनालिसिस सेल’ की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019-2020 में कच्चे तेल का कुल उत्पादन 321 लाख टन रहा है, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 6 फ़ीसदी कम है. यह सब ऐसे समय पर घटित हुआ जब भारतीय क्रूड आयल बास्केट का दाम 16.38 डालर प्रति बैरल के निचले स्तर पर रहा है. आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि बीते हफ्ते (WTI) क्रूड आयल का दाम भी ऋणात्मक मूल्य में चला गया है.

हाल ही में तेलों के दामों के संदर्भ में केंद्र सरकार ने एक नया कानून पारित किया है. इस कानून के तहत केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल पर मौजूदा 10 रूपये और 5 रूपये प्रति लीटर के उत्पाद शुल्क के साथ-साथ विशेष तौर पर 8 रूपये का अतिरिक्त शुल्क लगा सकती है. अब चुकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट जारी है इसलिए ये अतिरिक्त शुल्क शायद ही अंतिम बिक्री मूल्य में कोई खास प्रभाव ला सकेगा. हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि भारत की ‘स्ट्रैटेजिक पैट्रोलियम रिजर्व’ की क्षमता काफी कम है. तमाम वैश्विक बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत बहुत कम ही ऑयल रिजर्व रख पाता है. उदाहरण के रूप में अमेरिका 730 मिलियन बैरल, चीन 550 मिलियन बैरल, जापान 528 मिलियन बैरल, दक्षिण कोरिया 214 मिलन बैरल का आयल रिजर्व रखने में सक्षम है तो वहीं भारत महज 39 मिलियन बैरल तेल का ही रिजर्व एक बार में रख सकता है. यह एक ऐसा विषय है जो महज अभी के लिए नहीं बल्कि भविष्य के परिपेक्ष्य में भी प्रासंगिक है. अगर आज हमारी स्ट्रैटेजिक ऑयल रिजर्व की क्षमता अधिक होती तो निश्चित ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में आई ऐतिहासिक गिरावट का फायदा हम भविष्य में ले पाते.


(लेखक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र हैं)

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