प्रजनन की आधुनिक पद्धति- सरोगेसी

भारत की विज्ञान के क्षेत्र में विकास किसी से अव्यक्त नहीं रहा है. भारत ने प्रजनन विज्ञान में भी अच्छे कीर्तिमान हासिल किए हैं, यही कारण है कि विश्व की दूसरी और भारत की पहली आईवीएफ सरोगेसी की मदद से जन्मे शिशु का नाम कनुप्रिया उर्फ दुर्गा था, जिनका जन्म 3 अक्टूबर, 1978, कोलकाता हुआ था. वही बात करे विश्व के पहले आईवीएफ से जन्मे शिशु की तो वो हैं लुईस जॉय ब्राउन, जिसका जन्म 25 जुलाई, 1978 को ग्रेट ब्रिटेन में हुआ था.

सरोगेसी यानी किराए की कोख. यह एक प्रजनन तकनीक है, जिसमें पुरुष और स्त्री की शुक्राणु और अंडाणु को तीसरी महिला (जिसे सेरोगेट कहते हैं) के गर्भ में प्रत्योपित कर दिया जाता है, भ्रूण का विकास सरोगेट माता के गर्भ में ही होता है तथा जन्म के बाद उसे उसके अनुवांशिक माता-पिता को सौंप दिया जाता है. इनफर्टिलिटी यानी अनुर्वरता, नपुंसकता, बांझपन दंपत्ति की संतान उत्पत्ति में अक्षमता को दर्शाता है.

डब्लू एच ओ द्वारा अनुर्वरता की परिभाषा तीन दशकों में तीन बार बदली जा चुकी है, वर्ष 2005 के परिभाषा के मुताबिक ऐसे युगल जो अरक्षित यौन गतिविधि में संलग्न है और एक वर्ष के भीतर भ्रूण धारण करने में अक्षम हैं तो उसे अनुर्वरता की श्रेणी में रखा जाएगा. 2005 में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के दिशानिर्देशों में भी डब्ल्यूएचओ की अनुर्वरता की परिभाषा को ही दोहराया गया.

पिछले कुछ दशकों मे भारत सेरोगेसी का एक बड़ा केंद्र बनकर उभरा है जिसका मुख्य कारण नूतन तकनीक, अपेक्षाकृत लागत, कठोर कानून का अभाव और सरोगेट माता की आसानी से उपलब्धता है. साथ ही भारत उन कुछ देशों में से है जो शर्तों पर वाणिज्यिक सरोगेसी को भी अनुमति देता है जैसे- रूस, यूक्रेन.

भारत में सरोगेसी के तहत बच्चा पैदा करने की लागत 18 लाख से 21 लाख तक होता है जो अन्य देशों की तुलना में एक तिहाई है जिसमें एक सरोगेट माता यथोचित स्वास्थ्य चिकित्सा व्यय तथा बीमा गर्भधारण करने के लिए मिलता है.

वर्ष 2015 में विदेशी जोड़ों को प्रतिबंधित के बावजूद (गृह मंत्रालय द्वारा सर्कुलर से और फिर सेरोगेसी बिल 2016 के माध्यम से) भारतीय सरोगेसी उद्योग में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई है जिसका मुख्य कारण संपन्न भारतीयों तथा एनआरआई द्वारा सरोगेसी की मांग है. अध्ययन के अनुसार भारत में हर साल 5000 बच्चें सरोगेसी की मदद से पैदा होते हैं तथा सरोगेसी उद्योग का कारोबार 25000 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है.

हालांकि जब भी बात सरोगेसी की होती है तो इसके नैतिक और अनैतिक होने का भी प्रश्न उठता है, कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि अनुर्वर दंपत्ति अपने मातृत्व और पितृत्व को पा सकेंगे. विपरीत इसके कुछ का मानना है गरीब तबके की महिलाएं अर्थिक सहायता पाने के लिए गर्भ धारण करती हैं, जिससे मातृत्व की भावनाएं लुप्त हो जाएंगी और समुदाय में अराजकता फैल जाएगी.

सहायक प्रजनन तकनीक ने जहां एक तरफ मावन जाति के लिए वरदान से कम नहीं है वही दुसरी तरफ इसका स्याह पक्ष भी है. सरोगेसी एक रागात्मिक प्रकिया है, इसमें सरोगेट माता को गर्भधारण काल तक तो स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है परन्तु बच्चें के जन्म के बाद उसके स्वास्थ्य कोई ध्यान नहीं दिया जाता है. दौलतमंद घरों की महिलाएं खुद को प्रसव प्रकिया से दूर रखने तथा प्रसव पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए भी सरोगेसी का रास्ता अपनाती हैं. उदाहरण तौर पर अभिनेता शाहरुख़ खान की तीसरी संतान, गौरी खान जो पहले ही दो बच्चों को जन्म दिया है, उन्होंने भी इस तकनीक का प्रयोग किया है. साथ ही ऐसे भी मामले सामने आए हैं जिनमें सरोगेट बच्चें के असामान्य होने का हवाला देकर या जुड़वा बच्चें के जन्म पर सरोगेट माता को ही बच्चें को अपनाने के लिए विवश किया जाता है. कुछ घटनाओं में सरोगेट बच्चा लड़की होने के कारण इच्छुक दंपत्ति बच्चें को स्वीकार करने से ही मना कर देते है.

वर्तमान समय में भारत सरकार सरोगेसी के लिए नए कानून बनाने का काम कर रही है। सरोगेसी बिल 2016 के अनुसार ऐसे अनुर्वर भारतीय युगल( आयु सीमा 23 से 50 महिला और 26 से 55 पुरूष के लिए) जो 5 साल से  कानून रूप से शादीशुदा है, वो परोपकारी सरोगेसी का सहायता संतान सुख के लिए ले सकते हैं. मालूम हो कि नये बिल के पारित होने के साथ ही वाणिज्यिक सरोगेसी पूर्ण रूप से बैन कर दिया जाएगा. इच्छुक दंपत्ति परोपकारी सरोगेसी से ही संतान प्राप्ति कर सकती है, परोपकारी सरोगेसी के तहत निकट संबंधी ही सरोगेट माता बन सकती है फिलहाल अभी सरकार यह तय करने में अक्षम हैं कि निकट संबंधी कौन हो सकता है, साथ ही नियम के विरुद्ध जाने वालों के लिए 10 लाख रूपए जुर्माने के साथ 10 साल के जेल का भी प्रावधान है. फिलहाल, सरकार सरोगेट माता तथा सरोगेट बच्चें के हितों को ध्यान में रखते हुए बिल को राज्यसभा में समिति के पास और विचार के लिए भेज दिया है.

प्रभात मिश्रा
छात्र- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
सदस्य – फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल

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